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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (८०५) और पित्तोरिक्लष्ट तथा रक्तोरिक्लष्ट वर्ल्समें मधुर औषधोंके समूहमें सिद्धकिये हुए घृतसे ॥ १६ ॥ स्निग्ध करायेहुए पुरुषकी शिराओंका विमोक्षण करवाना और त्रिफलेका विरेचन करवाना और लिखेहुए वममें जो रुधिर गिरतारहो तो प्रक्षालनकरना हितहै ॥१७॥ और मुलहटीके क्वाथमें दूध और चंदन मिला सिद्धकर सेंक करना हितहै ॥ पक्ष्मणां सदने सूच्या रोमकूपान्विकुट्टयेत् ॥१८॥ ग्राहयेद्वाजलौकाभिः पयसेक्षुरसेन वा ॥ वमनं नावनं सर्पिः शृतं मधुरशीतलैः ॥ १९॥ और पक्ष्मसदन रोगमें सूईसे रोमोंकी जडको छेदै ॥ १८ ॥ अथवा जोखों करके ग्रहण करवावै अथवा दूध ईखके रससे वमन करवाना हितहै और मधुर शीतल अर्थात् दाख आदिकोंसे सिद्धकिये घृतकी नस्य देनी हितहै ॥ १९ ॥ संचूर्ण्य पुष्पकासीसं भावयेत्सुरसारसैः ॥ ताम्र दशाहं परमं पक्ष्मशाते तदञ्जनम् ॥२०॥ और नीले हीराकसीसके चूर्णको पूर्वाके रसमें तांबेके पात्रमें डाल दशदिनतक भावना दे,अंजन बनावे यह अंजन पक्ष्मशात अर्थात् पलकोंके कटजानेमें हितहै ॥ २० ॥ पोथकीलिखिताःशुण्ठीसैन्धवप्रतिसारिताः॥ उष्णाम्बुक्षालिताः सिञ्चेत्खदिराढकिशिभिः ॥ २१ ॥ अप्सिद्वैडैिनिशाश्रेष्ठामधुकैर्वा समाक्षिकैः॥ और लिखीहुई पोथकीको झूठ सेंधानमक इन्होंकरके प्रतिसारणकरै और गरम जलसे प्रक्षालनकर खैर फटकडी सहोजनेके क्वाथसे सेचनकरै ॥ २१ ॥ अथवा सिद्ध कीहुई दोनों हलदी मुलहटीके जलमें शहद मिला सेचन करना चाहिये ।। कफोक्लिष्ट विलिखिते सक्षौद्रैः प्रतिसारणम् ॥ २२॥ सूक्ष्मैः सैन्धवकासीसमनोह्वाकणता_जैः॥ वमनाअननस्यादि सर्वं च कफजिद्धितम् ॥२३॥ और कफोक्लिष्ट वर्मके लिखनेमें शहदसहित सैंधवादिकोंका प्रतिसारण करवावे, ॥ २२ ।। सूक्ष्म करेहुये सेंधानमक हीराकसीस मनसिल पीपल रसोंतका प्रतिसारण करवावे और वमन अंजन नस्य आदिक ये सब कफनाशक करने चाहिये ॥ २३ ॥ कर्त्तव्यं लगणेप्येतद्दशान्तावग्निना दहेत् ॥ और ऐसेही लगणरोगमें करना चाहिये, ऐसे यदि शांति नहीं होवे तो अग्निसे दग्धकरै ॥ कुकूणे खदिरश्रेष्ठानिम्बपत्रैः शृतं घृतम् ॥ २४ ॥ . पीत्वा धात्री वमेत्कृष्णायष्टीसर्षपसैन्धवैः ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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