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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७८९) विषेण श्याववदनो नष्टच्छायाबलेन्द्रियः॥ वेगान्तरेऽपि संभ्रान्तो रक्ताक्षस्तं विवर्जयेत् ॥१७॥ और विषकरके उपजे उन्मादमें श्याव अर्थात् लंगूर सरखि वर्गका मुख होजावे और कांतिनष्ट होजावे बल और इंद्रिय नष्ट होजावें वेगशांत होनेपरभी भ्रमहो नेत्रलालहों ऐसे उन्मादवालेको वर्जदेवै ॥ १७॥ अथानिलज उन्मादे स्नेहपानं प्रयोजयेत् ॥ पूर्वमावृतमार्गे तु सस्नेहं मृदु शोधनम् ॥ १८॥ और वातसे उपजे उन्मादमें स्नेहपान युक्त करना चाहिये और जिसमें स्त्रोतोंके मार्ग रुकजावें ऐसे वातके उन्मादमें स्नेहपान करवानेके पहले स्नेह सहित कोमल जुलाबदेवै ॥ १८ ॥ कफपित्तभवेऽप्यादौ वमनं सविरेचनम् ॥ स्निग्धस्विन्नस्य बस्ति च शिरसः सविरेचनम् ॥ १९॥ तथास्य शुद्धदेहस्य प्रसादं लभते मनः ॥ और कफसे उत्पन्नहुये तथा पित्तसे उपजे उन्मादमें पहले वमन और जुलाब दिवावे और स्निग्ध और पसीने दिवावै बस्तिकर्म करवावै और शिरका जुलाब दिवावै ॥ १९ ॥ इस प्रकार शुद्धदेह करनेसे इसका मन प्रसन्न होजाताहै ॥ इत्थमप्यनुवृत्तौ तु तीक्ष्णं नावनमंजनम् ॥ २०॥ हर्षणाश्वास नोत्रासभयताडनतर्जनम् ॥ अभ्यङ्गोद्वर्तनालेपधूमान्पानं च सर्पिषः ॥२१॥ युंज्यात्तानि हि शुद्धस्य नयन्ति प्रकृति मनः॥ ऐशा करनेसेभी उन्माद निवृत्त नहीं होवे तो तक्ष्णि नस्य और अंजन युक्त करना चाहिये ॥ २० ॥ और हर्षण आश्वासन अर्थात् समझाना त्रास भय ताडन झडकना मालिश उद्वर्तन आ. लेप धूम घृतपान ॥ २१ ॥ ये सब युक्तकरने चाहिये, क्योंकि शुद्धहुये देहवाले मनुष्यके मनको प्रकृतिको प्राप्त करदेतेहैं ॥ हिंगुसौवर्चलव्योपैपिलांशैघृताढकम् ॥ २२ ॥ सिद्धं समूत्रमुन्मादभूतापस्मारनुत्परम् ॥ और हींग कालानमक झूठ मिरच पीपल इन्होंको आठ आठ तोले लेवे और २५६ तोले घृत ॥२२॥फिर इसको गोमूत्रके संग सिद्धकरै यह युक्तकिया हुआ उन्माद भूत अपस्मारको नाशताहै।। द्वौ प्रस्थौ स्वरसाद्ब्राहया घृतप्रस्थं च साधितम्॥२३॥व्योष श्यामात्रिवृदन्तीशंखपुष्पीनृपद्रुमैः।। ससप्तलाकृमिहरैः कल्कि तैरक्षसम्मितैः॥२४॥पलवृद्ध्या प्रयुंजीत परंमात्राचतुष्पलम्॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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