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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७७७) और विष्लुत तथा त्रस्त और रक्त जिसके नेत्र होवें और शुभगंध आवे सुंदर तेज होवे ॥२१॥ प्रिय नृत्य कथा गीत स्थान पुष्प और अनुलेपको धारण रक्खे और मत्स्यके मांसकी रुचि रक्खे रुष्टहोवे और तुष्टहोवे बलवालाहो और जिसका विनाश न हो ॥ २२ ॥ और हाथको आगेको करके यह कहै कि किसके अर्थ क्या देवू और गूढ बातको कहै और बैद्य ब्राह्मण इन्होंका भाव रक्खे ॥ २३ ॥ और थोडा क्रोधहोवे और जिसकी गति हृतहोवे वह पुरुष यक्षोंसे गृहीत जानना ।। हास्यनृत्यप्रियं रौद्रचेष्टं छिद्रप्रहारिणम् ॥ २४ ॥ आक्रोशिनं शीघ्रगतिं देवद्विजभिषग्द्विषम् ॥ आत्मानं काष्ठशस्त्राद्यैनन्तं भोःशब्दवादिनम् ॥२५॥ शास्त्रवेदपठं विद्याद्गृहीतं ब्रह्मराक्षसैः ॥ और हास्य नांचना इन्होंमें प्रियहोवे भयंकर जिसकी चेष्टा होवे और जो छिद्र देखके प्रहार करै ॥ २४ ॥ और बहुतसा पुकारे जल्दी आगमनकर और देवता ब्राह्मण वैद्यसे वैरकरे और अपनी आत्माको काष्ठ शस्त्र आदिकोंसे मारता हुआ ऐसा शब्द कहै ॥ २५ ॥ और शास्त्र वेदको पढे ऐसा पुरुष ब्रह्मराक्षसोंसे गृहीत जानना ।। सक्रोधदृष्टिं भृकुटिमुद्वहन्तं ससंभ्रमम् ॥२६॥ प्रहरन्तं प्रधावन्तं शब्दन्तं भैरवाननम् ॥ अन्नाद्विनापि बलिनं नष्टनिद्रं निशाचरम् ॥२७॥ निर्लज्जमशुचिं शूरं कृरं परुषभाषिणम् ॥ रोषणं रक्तमाल्यस्त्रीरक्तमद्यामिवप्रियम् ॥ २८ ॥ दृष्ट्वा च रक्तं मांसं वा लिहानं दशनच्छदौ ॥ हसन्तमन्नकाले च राक्षसा धिष्ठितं वदेत् ॥२९॥ और जो क्रोधकी दृष्टि रक्खै भ्रुकुटियोंको चढाके संभ्रमको प्राप्त होवे ॥ २६ ॥ और प्रहार करताहुआ हो और भाजता हुआ हो और शब्द करता हुआ हो भयंकर जिसका मुख हो और अन्नके विना खाये हुएही बलवाला हो निद्रासे रहितहो रात्रीमें विचरै ॥२७॥और लज्जासे रहित हो अशुद्ध रहै शूरवीर तथा क्रोधी हो और कठोर वचन बोले और क्रोध कर और लाल पुष्पोंको धारण करें स्त्रीमें रत रहै और मदिरा मांसमें प्यार रक्खे ॥ २८ ॥ और रुधिर तथा मांसको देखके ओष्ठको चाटने लगजावे, और अन्नकालमें हँसने लगजावे तिस पुरुषको राक्षससे गृहीत हुआ कहै॥२९॥ अस्वस्थचित्तं नैकत्र तिष्ठन्तं परिधाविनम् ॥ उच्छिष्टनृत्यगान्धर्वहासमद्यामिषप्रियम् ॥३०॥ निर्भर्त्सनादीनमुखं रुदन्तमनिमित्ततः ॥ नखैर्लिखन्तमात्मानं रूक्षध्वस्तवपुःस्वरम् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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