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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७७२) अष्टाङ्गहृदयेपीछे एकांतमें साध्यग्रहसे संयुक्त और एकांत स्थानमें स्थित ॥ ४१ ॥ परंतु तीनवार शोधित और सींचेहुये और सब कालमें निकट अग्निवाले और वखरेहुये वृद्धि औषधके फूल पत्ते बीज अन्न सरसों इन्होंसे संयुक्त ।। ४२ ।। राक्षसोंको नाशनेवाले तलकरके प्रचालित दीपकसे नष्ट दरिद्रतावाले और मैथुन मदिरा मांस इन्होंसे निवृत्त परिचारवाले स्थानमें स्थित ॥ ४३ ॥ और पुराने तसे अभ्यक्त और गरमपानीसे सेचित परंतु खरैहटी नींब अरनी अमलताससे साधितकिया॥४४॥ नीब शोनापाठा जामन वरण कतृण ब्राह्मी ऊंगा पाटला मीठा सहोजना ॥४५॥ काकजंघा श्वेतभूमि कोहला कैथ दूधवाले वृक्ष कदंब करंजुआ इन्होंकरके सिद्धकिये गरमपानीसे स्नानकिये मनुष्यको धूपितकरै ॥४६॥ परंतु गैंडा भगेरा सर्प सिंह ऋच्छ इन्होंकी घृतसे मिश्रित चर्मोकरके धूपको देवै॥ पूतीदशाङ्गीसिद्धार्थवचाभल्लातदीप्यकैः॥४७॥ सकुष्ठैः सघृतैधूपः सर्वग्रहविमोक्षणः॥ और पूतिकरंजुआ श्वेतसरसों बच भिलावां अजमोद ॥ ४७ ॥ कूट घृत इन्होंसे बनाया धूप सब ग्रहोंके दोषोंको दूरकरताहै ॥ वचाहिंगुविडंगानि सैन्धवं गजपिप्पली ॥४८॥ पाठा प्रतिविषा व्योषं दशांगः कश्यपोदितः॥ वच हींग वायविडंग सेंधानमक गजपीपल ॥ ४८ ॥ पाटा अतीश सूट मिरच पीपल यह दशांग धूप कश्यपजीने कहाहै ।। सर्वपा निम्बपत्राणि मूलमश्वखुरा वचा॥४९॥ भूर्जपत्रं घृतं धूपः सवग्रहनिवारणः॥ और सरसों नावके पत्ते मूली गिरिकणिका बच ।। ४९ ।। भोजपत्र घृत इन्होंका धूप सत्र ग्रहोंको निवारण करताहै ।। अनन्ताम्रास्थितगरं मरिचं मधुरो गणः ॥ ५० ॥ शृगालविन्ना मुस्ता च कल्कितैस्तैघृतं पचेत् ॥ दशमूलरसक्षीरं युक्तं तद्ग्रहजित्परम् ॥ ५१ ॥ और धमासा आंबकी गुठली तगर मिरच मधुरगण ॥ ५० ॥ पृश्निपर्णी नागरमोथा इन्होंक . कल्कोंकरके घृतको पकावै परंतु दशमूलका रस और धसे सिद्ध किया यह घृत अतिशयकरके ग्रहोंको जीतताहै ॥ ११ ॥ रास्नाद्वयंशुमतीवृद्धपञ्चमूलवचाधनात्॥काथे सर्पिः पचेपिष्टैः सारिवाव्योषचित्रकैः॥५२॥ पाठाविडंगमधुकपयस्याहिंगुदारु भिः॥ सग्रन्थिकैः सेन्द्रयवैः शिशोस्तत्सततं हितम् ॥ ५३ ॥ सर्वरोगग्रहहरं दीपनं बलवर्णदम् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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