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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७०) अष्टाङ्गहृदयेऔर रेवतीग्रहमें धूम्रपना और नीलपना और कान नासिका नेत्र इन्होंका मर्दन ॥ २७ ॥ खांसी विक्षेप कुटिलमुख रक्तपना इन्होंका होजाना बकरोंके समान गंध ज्वर और शोष हरित और द्रवरूप बिष्ठा ॥२८॥ जायते शुष्करेवत्यांक्रमात्सर्वांगसंक्षयः॥केशशातोऽनविद्वेषः स्वरदैन्यं विवर्णता॥२९॥रोदनं गृध्रगन्धित्वं दीर्घकालानुवर्त्तनम् ॥ उदरे ग्रन्थयो वृत्ता यस्य नानाविधं शकृत् ॥ ३० ॥ जिह्वाया निम्नता मध्ये श्यावं तालु च तं त्यजेत् ॥ शुष्करेवतीग्रहमें क्रमसे सब अंगोंका सक्षय उपजताहै और बालोंका कटना और अन्नका विशेषकरके द्वेष और स्वरकी दीनता और वर्णका बदलजाना ॥ २९ ॥ रोना और गांधके समान गंधपना और दर्घिकालमें अनुवर्तन और पेटमें गोलरूप ग्रंथियें और जिसका अनेक प्रकारवाला विष्ठा ॥ ३० ॥ और जीभके मध्यमें डूंघापना और धूम्रवर्ण तालुआ होजावे तिस बालकको त्यागै ॥ भुञ्जानोऽन्नं बहुविधं यो पालः पारिहीयते ॥ ३१॥ तृष्णागृहीतः क्षामाक्षो हन्ति तं शुष्करेवती॥ और अनेक प्रकारके भोजनोंको खाताहुआ जो बालक दूबला कृश होताजावै ॥ ३१ ॥और तृषाकरके गृहीतहो और दुर्बल नेत्रोंवाला होवै तिस बालकको शुष्करेवती ग्रह मारताहै ॥ हिंसारत्यर्चनाकांक्षा ग्रहग्रहणकारणम् ॥३२॥ और हिंसा अर्थात् हत्या और रमण और अर्चना अर्थात् पूजा इन्होंकी वांछा यह ग्रहोंके ग्रहणमें हेतुहै ॥ ३२ ॥ तत्र हिंसात्मके बालो महान्वा खूतनासिकः ॥क्षतजिह्वाक्कणेबाढमसुखी साश्रुलोचनः॥ ३३ ॥ दुर्वर्णो हीनवचनः पूतिगन्धिश्च जायते ॥क्षामो मृत्रपुरषिं स्वं मृदाति न जुगुप्सते॥ ॥३४॥ हस्तौ चोद्यम्य संरब्धो हन्त्यात्मानं तथा परम् ॥ तद्वच्च शस्त्रकाष्ठाद्यैरग्निं वा दीप्तमाविशेत् ॥ ३५॥ अप्सु मजे. त्पतेत्कृपे कुर्य्यादन्यञ्च तद्विधम्॥ तृड्दाहमोहान्पूयस्य छर्दनं च प्रवर्त्तयेत्॥३६॥रक्तं च सर्वमार्गेभ्यो रिष्टोत्पत्तिश्च तं त्यजेत्। तहां हिंसात्मकग्रहमें बालक अथवा बडा झिरतीहुई नासिकावाला, और कटीहुई जभिवाला और अतिशय करके कुलाताहुआ और सुखसे वार्जत और आंसुओंकरके भरे नेत्रोंवाला॥३३॥और दुष्ट वर्णवाला, और हीन वचनवाला और बुरी गंधसे संयुक्त और कृशबालक होजाता है और अपने मृत्रको व विष्ठेको क्षुदित करताहै, और निंदित नहीं करताहै ॥ ३४ ॥ और हाथोंको उठाके For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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