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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७६४) अष्टाङ्गहृदयेपीतं पीतं वमति यः स्तन्यं तं मधुसर्पिषा ॥५८॥ द्विवार्ताकी फलरसं पञ्चकोलं च लेहयेत्॥पिप्पलीपञ्चलवणकृमिजित्पारि भद्रकम् ॥५९॥ तद्वल्लिह्यात्तथा व्योष मषी वा रोमचर्मणाम् लाभतः शल्यकश्वाविद्रोधक्षशिखिजन्मनाम् ॥६०॥ और जो बालक बारंबार पानकिये दूधका वमनकरै तिसको शहद और घतक संग ॥१८॥ दोनों प्रकारकी कटेहलीके फलका रस और पीपल पीपलामूल चव्य चीता सूंठको चटावै, अथवा पीपल पांचों नमक वायविडंग नींबको चटावै ॥ ५९ ॥ अथवा संठ मिरच पीपल इन्होंको शहदके संग चटावै, अथवा शल्यक शेह गोह ऋच्छ मोरके रोमोंकी और चामकी श्याहीको शहद और घृतसे मिलाके चटावै ॥ ६० ।। खदिरार्जुनतालीसकुष्ठचन्दनजे रसे॥ सक्षीरं साधितं सर्पिर्वमथु विनियच्छति ॥ ६१ ॥ खैर कौहवृक्ष तालीशपत्र कूठ चंदनके रसमें दूधकरके संयुक्त साधितकिया वृत छर्दिको शांत करताहै ॥ ६१ ॥ सदन्तो जायते यस्तु दन्ताःप्राग्यस्यचोत्तराः॥कुर्वीततस्मिन्नुत्याते शान्तिकं च द्विजायते ॥६२॥ दद्यात्सदक्षिणं वालं नैगमेषं च पूजयेत् ॥ जो दंतोंसे सहित बालक उपजे अथवा जिस बालकके पहिले ऊपरले दंत उपजे तिस उत्पातमें शांतिको, करै और ब्राह्मणके अर्थ ॥ १२ ॥ सुवर्णकी दक्षिणा सहित तिस बालकको देवै, और नैगमेष अर्थात बालकके रोगकी पूजाकरै ।।। तालुमांसे कफःक्रुद्धः कुरुतेतालुकण्टकम् ॥६३॥ तेनतालुप्रदे शस्य निन्नता मूर्ध्नि जायते ॥ तालुपाते स्तनद्वेषः कृछात्पानं शकृद्रवम् ॥६४॥ तृडास्यकण्ड्डक्षिरुजा ग्रीवादुद्धरता वमिः ॥ और तालुके मांसमें कुपितहुआ कफ तालुकंटक रोगको करताहै ॥ ६३ ॥ तिस करके शिर में तालुप्रदेशकी निम्नता अर्थात् डूबापन उपजताहै तथा तालुपात होजाताहै और दूधमें वैरभाव उपजताहै और कष्टसे स्तनके दूधका पान करताहै और द्रवरूप विष्टाको उपजाताहै ॥ ६४ ॥ और तृषा खाज नेत्रपीडा ग्रीवाकी दुर्द्धरता छार्दै ये उपजतेहैं ॥ तत्रोक्षिप्य यवक्षारक्षौद्राभ्यां प्रतिसारयेत् ॥६५॥ तालुतद्वत्कणाशुण्ठीगोशकृद्रससैन्धवः॥ - तहां तालुको उत्क्षेपित जवाखार और शहदकरके तालको प्रतिसारित करै ॥ ६५ ॥ अथवा पीपल सूंठ गायके गोबरका रस सेंधानमक इन्होंकरके प्रतिसारित करै । For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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