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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । कासमेतम। (७५९) पीपलसे संयुक्त किये घृतको पान करावै और मैंनफलके फूलोंको पीसके शहदमें संयुक्तकर धायकी चूंचियोंको और बालकके होठोंको लेपितकरै ॥ १७ ॥ ऐसे करनेसे बालक सुखपूर्वक वमन करताहै और तीक्ष्ण औषधोंकरके बालककी धायको वमन करावै पीछे आचरित संसर्गवाला बालक मुस्तादिगणके काथको पावै ॥१८॥ अथवा तगर कलोंजी देवदार इन्द्रयव इन्होंके काथको अथवा अतीश नागरमोथा वच पीपल पीपलामूल चव्य चीता झूठ इन्होंके क्वाथको पावै ॥१९॥ स्तन्ये त्रिदोषमलिने दुर्गन्ध्यामं जलोपमम्॥ विवद्धमच्छं विच्छिन्नं फेनिलं चोपवेश्यते ॥२०॥शकृन्नानाव्यथावर्ण मूत्रं पीतं सितं धनम् ॥ ज्वरारोचकतृड्छर्दिशुष्कोद्वारविजृम्भिकाः ॥२१॥अंगभंगोऽङ्गविक्षेपः कूजनं वेपथुर्धमः॥घाणाक्षिमुखपाकाद्या जायन्तेऽन्येऽपि तं गदम् ॥२२॥क्षीरालसकमित्याहुरत्ययं चातिदारुणम् ॥ सन्निपातसे दुष्टहुये दूधमें दूर्गंधित और कच्चा और जलके समान उपमावाला और विशेषकरके बन्धाहुआ और पतला और विशेषकरके छिन्नहुआ और झागोंसे संयुक्त ऐसे विष्ठाको बालक गुदाके द्वारा निकासताहै ॥ २० ॥ और अनेक प्रकारकी पीडा और वर्णसे संयुक्त और पीला और सफेद करडा मूत्र उपजताहै और ज्वर अरोचक तृषा छर्दि सूखी डकार जंभाई ॥ २१ ।। अंगभंग अंगविक्षेप शब्दकरना कांपना भ्रम और नासिका मुख नेत्र इन्होंका पाक आदि और ऐसेही प्रकारवाले अन्यभी रोग उपजतेहैं ॥ २२ ॥ इस रोगको क्षीरालसक कहतेहैं यह विनाशका हेतुहै और अत्यन्त दारुणहै ।। तत्राशु धात्री बालं च वमनेनोपपादयेत् ॥ २३॥ विहितायां च संसग्या वचादि योजयेद्गणम्॥निशादिवाथ कामाद्रीपाठातिक्ताघनामयान् ॥ २४ ॥ इसरोगमें बालकको और धायको शीघ्र वमन करावै ॥ २३ ॥ विहितकिये पेय आदिक्रममें वचादिगणको अथवा निषादि गणको अथवा काला अतीस पाठा कुटकी नागरमोथा कूठ इन्होंको प्रयुक्तकरै ॥ २४ ॥ पाठाशुण्ठयमृतातिततिक्तादेवाह्वसारिवाः॥ समुस्तमूर्वेन्द्रयवाः स्तन्यदोषहराः परम् ॥२५॥ पाठा सूंठ गिलोय चिरायता कुटकी देवदार सारिवा नागरमोथा मूर्वा इन्द्रयव ये सब अतिशय करके दूधके दोपको हरतेहैं ॥ २५ ॥ अनुवन्धे यथाव्याधि प्रतिकुर्वीत कालविता।दन्तोद्भेदश्च रोगा For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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