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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पस्थानं भाषाटीकासमेतम्। (७३९) क्वाथद्वयंप्राग्विहितं मध्यदोषेऽतिसारिणि॥उष्णस्य तस्माद्धयेकस्य तत्र पानं प्रशस्यते ॥४॥ फलवय॑स्तथा स्वेदाः कालं ज्ञात्वा विरेचनम्॥बिल्वमूलत्रिवृदारुयवकोलकुलत्थवान्॥५॥ सुरादिमांस्तत्र बस्तिः स प्राक्पेष्यस्तमानयेत् ॥ मध्य दोषवाले अतिसारमें दो क्वाथ पहिले कहदियेहैं, तिन्हों मेंसे गरमरूप एक कोईसे काथका तहां पान करना श्रेष्ठहै ॥४॥ फलवर्ति तथा स्वेदकर्म और कालको जानकर जुलाब श्रेष्ठहै और वेलपत्रकी जड़ निशोत देवदार यव बेर कुलथी ॥ ५ ॥ और मदिरा आदि पहिले कहाहुआ पेष्य वस्ति तिस दोषको बचताहै ॥ युक्तोऽल्पवीर्यो दोषाढ्यो रूक्षे क्रूराशयेऽथवा ॥६॥ बस्तिो षावृतो रुद्धमार्गो रुन्ध्यात्समीरणम् ॥सविमार्गोऽनिल कुऱ्या दाध्मानं मर्मपीडनम् ॥७॥ विदाहं गुदकोष्ठस्य मुष्कवंक्षणवे दनाम् ॥ रुणद्धि हृदयं शूलैरितश्चेतश्च धावति ॥८॥ दोपोंसे संयुक्त रूक्ष और क्रूर आशयवाला क्रूरकोष्ठों युक्त किया ॥ ६ ॥ और दोषोंसे आच्छादित और रुद्धमार्गवाला बस्ति वायुको रोकताहै वही मार्गमें प्राप्त हुआ वायु अफाराको और मोंके पीडनको करताहै ॥ ७॥ गुदा और कोष्ठमें दाहको और पोतोंकी संधिमें पीडाको करताहै और शूलोंकरके हृदयको रोकताहै और जहां तहां अनियत देशमें दौडताहै ॥ ८ ॥ स्वभ्यक्तस्विन्नगात्रस्य तत्र वर्ति प्रयोजयेत् ॥ विल्वादिश्च निरूहः स्यात्पीलुसर्षपमूत्रवान्॥९॥ सरलामरदारुभ्यां साधितं वाऽनुवासनम् ॥ ___ अच्छीतरह अभ्यक्त और स्विन्न शरीरवाले मनुष्यके तहां वर्तिको प्रयुक्तकर और पालु सरसों गोमूत्रसे संयुक्त किया बिल्वादि निरूह हितहै ॥९॥ अथवा सरल और देवदारकरके साधित किया अनुवासन हितहै । कुर्वतो वेगसंरोधं पीडितो वाऽतिमात्रया॥१०॥अस्निग्धलवणोष्णो वा बस्तिरल्पोऽल्पभेषजः।मृदुर्वा मारुतेनोवं विक्षिप्तो मुखनासिकात्॥११॥निरेतिमू हल्लासतृड्दाहादीन्प्रवर्तयन् ॥ वेगके धारणको करतहुये मनुष्यको अतिमात्राकरके पीडितकिया बस्ति अथवा स्निग्ध लवण उष्णसे वर्जितहुआ बस्ति अथवा मात्राकरके ।। १० ।। अल्प बस्ति अथवा अल्प औषधोंसे संयुक्त वस्ति अथवा कोमल बस्ति वायुकरके ऊपरको फेंका हुआ मुख और नासिकाके द्वारा ॥ ११ ॥ मूर्छा थुकथुकी तृषा दाह आदिको प्रवृत्त करताहुआ निकसताहै ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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