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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७३७) शःप्लीहमेहाढ्यमारुतान् ॥ आनाहमश्मरीं चाशु हन्यात्तदनुवासनम् ॥६५॥ सेंधानमक मैनफल कुठ सौंफ जलवेत वच नेत्रवाला मुलहटी भारंगी देवदार कायफल ॥ ६२॥ सूठ पोहकरमूल मेदा चव्य चीता कचूर वायविडंग अतीश कालानिशोत रेणुका कालादाना शालपर्णी ॥६३॥ वेलगिरी अजमोद पीपल जमालगोटाकी जड रायशन इन सब समान भागोंकरके अरंडीका तेल अथवा साधारण तेल साधित करना योग्य है यह कफरोगको नाशता है !!६४॥ यह अनुवासन बास्ति वर्मरोग उदावर्त गुल्म बवासीर प्लीहरोग प्रमेह रक्तवात अफारा पथरी इन सबोंको तत्काल नाशती है ।। ६५ ॥ साधितं पञ्चमूलेन तैलं बिल्वादिनाऽथवा ॥ कफघ्नं कल्पयेत्तैलं द्रव्यैर्वा कफघातिभिः॥६६ ॥ फलैरष्टगणैश्चाम्लैः सिद्धान्वासनं कफे ॥ बेलगिरी आदि पंचमूलकरके साधित किये और कफको नाशनेवाले तेलको कल्पित करै अथवा कफको नाशनेवाले द्रव्योंकरके ॥ ६६ ॥ और आठगुणे मैंनफल और कांजीकरके सिद्ध किया अनुवासन कफमें हित है ।। मृदुवस्तिर्जडीभूते तीक्ष्णोऽन्यो बस्तिरिष्यते ॥६७॥ तीक्ष्णैर्विकर्षितः स्निग्धो मधुरः शिशिरो मृदुः॥ और मृदुबस्तिकरके जडीभूतमें अन्य तीक्ष्णवस्ति वांछित है ॥६॥ और तीक्ष्ण बस्तियोंकरके विकर्षित को स्निग्ध मधुर शीतल और कोमल बस्ति हित है ॥ तीक्ष्णत्वं मूत्रपील्वग्निलवणक्षारसर्वपैः ॥ ६८॥ प्राप्तकालं विधातव्यं घृतक्षीरैस्तु मार्दवम् ॥ और गोमूत्र पीलुफल चीता नमक जवाखार सरसों इन्होंकरके तीक्ष्णता करनी योग्य है ॥६६॥ प्राप्तकालमें दूध और घृत आदिकरके बस्तिका कोमलपना करनायोग्य है । बलकालरोगदोषप्रकृतीः प्रविभज्य योजितो बस्तिः॥ स्वैः स्वैरौषधवगैः स्वान्स्वान्रोगान्निवर्तयति ॥ ६९॥ और बल काल रोग दोष प्रकृति इन्होंका विभागकरके योजित किया बस्ति अपने अपने औषध वर्गोकरके अपने अपने रोगोंको निवृत्त करताहै ॥ ६९ ॥ उष्णार्ताना शीतांश्छीतार्तानां तथा सुखोष्णांश्च ॥ तद्योग्यौषधयुक्तान्बस्तीन्सन्तय॑ युञ्जीत ॥ ७० ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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