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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७३२) अष्टाङ्गहृदयेदूध दो प्रसृत अर्थात् १६ तोले शहद तेल घृत ये २४ तोले कडछीके आकारवाले मंथेसे मथित करी वस्ति वातको नाशतीहै बल और वर्णको करतीहै ॥ २१ ॥ एकैकः प्रसृतस्तैलप्रसन्नाक्षौद्रसर्पिषाम् ॥ विल्वादिमूलक्काथाद्वौ कौलत्थाद्वौ स वातजित् ॥ २२ ॥ तेल ८ तोले प्रसन्ना मदिरा ८ तोले शहद ८ तोले घृत ८ तोले पंचमूलका काथ १६ तोले कुलथीका काथ १६ तोले ऐसी बस्ति वातको जीतती है ॥ २२ ॥ पटोलनिम्बभूतीकरास्नासप्तच्छदाम्भसः ॥ प्रसृतः पृथगाज्याच्च बस्तिः सर्षपकल्कवान् ॥ २३॥ सपञ्चतिक्तोऽभिष्यन्दकृमिकुष्ठप्रमेहहा ॥ परवल नींब कायफल रायशण शातला इन्होंके काथ अलग अलग आठ आठ तोले और घृत ८ तोले इन्होंसे संयुक्त और सरसोंके कल्कसे संयुक्त ॥ २३ ॥ यह पंचतिक्त बस्ति अभिस्यंद कृमिरोग कुष्ट प्रमेहको नाशताहै ॥ चत्वारस्तैलगोमूत्रदधिमण्डाम्लकाञ्जिकात् ॥ २४॥ । प्रसृताः सर्षपैः पिष्टैविट्सङ्गानाहभेदनः॥ और तेल ८ तोले गोमूत्र ( तोले दहीका मंड ८ तोले कांजी ८ तोले ॥ २४ ॥ पिसीहुई सरसोंके संग यह वस्ति विष्ठा बंध और अफारेको जीततीहै ॥ पयस्येक्षुस्थिरारास्नाविदारीक्षौद्रसर्पिषाम् ॥ २५॥ एकैकः प्रसृतो बस्तिः कृष्णाकल्को वृषत्वकृत् ॥ और दूधी ईख शालपर्णी रायशण विदारीकंद इन्होंके काथ आठ आठ तोले शहद और घृत सोलह सोलह तोले इन्होंसे युक्त ॥२५॥ और पीपलके कल्कसे संयुक्त यह बस्ति वीर्यको करती है। सिद्धबस्तीनतो वक्ष्ये सर्वदा यान्प्रयोजयेत् ॥ २६॥ निर्व्यापदो बहुफलान्बलपुष्टिकरान्सुखान् ॥ और जिन्होंको सब कालमें मनुष्य प्रयुक्त करसके ऐसी सिद्ध बस्तियोंको मैं वर्णन करूंगा॥२६॥ व्यापी रहित और बहुत फलोवाली बल और पुष्टिको करनेवाली और सुखरूप सिद्ध बस्तियां होतीहैं ॥ मधुतैले समे कर्षः सैन्धवाद्विपिचुर्मिसिः ॥२७॥ एरण्डमूलकायेन निरूहो मधुतैलिकः ॥ रसायनं प्रमेहार्श कृमिगुल्मान्त्रवृद्धिनुत् ॥ २८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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