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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७१०) अष्टाङ्गहृदयेअथादाय ततो मात्रां जर्जरीकृत्य वासयेत् ॥६॥ शर्वरी म धुयष्टया वा कोविदारस्य वा जले॥कर्बुदारस्य विव्या वा नीपस्य विदलस्य वा ॥७॥शणपुष्प्याः सदापुष्प्याः प्रत्यक्पुष्प्युदकेऽथवा॥ ततः पिबेत्कषायं तं प्रातर्मुदितगालितम्॥८॥ सूत्रोदितेन विधिना साधु तेन तथा वमेत् ॥ श्लेष्मज्वरप्रति श्यायगुल्मान्तर्विदधीषु च॥९॥प्रच्छर्दयेद्विशेषेणयावत्पित्तस्य दर्शनम् ॥ पीछे तिन्होंमेंसे देशकालके अनुसार मात्राको ग्रहणकर और चूर्ण बना ॥ ६ ॥ मुलहटीकरके पानीमें एकरात्री बासितकरै अथवा अमलतासके पानी करके अथवा कीकरके संग पानीमें अथवा कडवीतोरीके संग पानी में अथवा कदंबके संग पानीमें अथवा वेतके संग पानी में।।७॥अथवा घाघरी औषधके पानीमें अथवा रूईकी वाडीके पानीमें अथवा श्वेत ऊंगाके संग पानीमें भिगोय पीछे प्रभा तमें मर्दित और छानेहुये तिस कषायको पावै ॥ ८॥ परन्तु सूत्रस्थानमें अच्छी तरह कहीहुई विधि करके पावै तिस करके अच्छी तरह वमन होताहै और कफ वर पीनस गुल्म अन्तरविद्रधी इन्होंमें ॥ ९ ॥ विशेषकरके जबतक पित्तका दर्शन होवे तबतक वमनको करै ॥ फलपिप्पलिचूर्णं वा क्वाथेन स्वेन भावितम् ॥ १०॥ त्रिभाग त्रिफलाचूर्ण कोविदारादिवारिणा ॥ पिबेज्ज्वरारुचिष्वेवं ग्रन्थ्यपच्यर्बुदोदरी॥११॥ पित्ते कफस्थानगते जीमृतातिजलेन तत् ॥ हृद्दाहेऽधोऽत्रपित्ते च क्षीरं तत्पिप्पलीश्रृतम् ॥१२॥:रेयी वा कफच्छर्दिप्रसेकतमकेषु तु॥ दध्युत्तरं वा दधि वा त स्रुतक्षीरसम्भवम् ॥ १३ ॥ अथवा मैंनफलकी पीपलीके क्वाथकरके भाविताकये मैनफलकी पीपलीके चूर्णको ॥ १० ॥ त्रिभाग त्रिफलाके चूर्णसे संयुक्तकर और अमलतासके पानीके संग ज्वर और अरुचीमें पीवै और ग्रंथि अपची अर्बुद पेटरोगवाला मनुष्य ॥ ११॥ कफके स्थानमें प्राप्तहुये पित्तमें मैनफलको नागरमोथा आदिके जलके संग पीवै और हृदयके दाहमें और अधोगतरक्तपित्तमें तिसी मैनफलकरके पकायेहुये दूधको ।। १२ ।। अथवा दूधकी पेयाको सेवै, और कफ छर्दैि प्रसेक तमकश्वास इन्होंमें दहीका सर अथवा दही अथवा दहीसे निकसा नैनी वृत अथवा दूधसे निकसाहुआ धृत ये सब हित हैं ॥ १३॥ फलादिक्वाथकल्काभ्यां सिद्धं तत्सिद्धदुग्धजम् ॥ सर्पिः कफाभिभूतेऽग्नौ शुष्यदेहे च वामनम् ॥ १४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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