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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम्। (७०७) रक्तसे मिलेहुये वायुमें वातरक्तकी क्रियाको करै और मांस करके आच्छादितहुये वायुमें पसीना मालिश मांसका रस दूध स्नेह हितहै ॥ ५९॥ प्रमेह मेद वात इन्होंको नाशनेवाला औषध वात रक्तमें हितहै और हड्डी तथा मज्जामें स्थितहुये वायुमें पूर्वोक्त महास्नेह हितहै और वीर्यकरके आच्छा दितहुये वायुमें पूर्वोक्त वातव्याधिमें वीर्यमें स्थित हुये वातके अर्थ कहाहुआ औषध हितहै ॥६॥ . अन्नावृते पाचनीयं वमनं दीपनं लघु।मूत्रावृते मूत्रलानि स्वेदा
उत्तरबस्तयः॥६१॥एरण्डतैलं वर्चःस्थे बस्तिस्नेहाश्च भेदिनः॥ अन्नकरके आच्छादितहुये वायुमें पाचन वमन दीपन हलका औषध हितहै और मूत्रकरके आच्छादितहुये वायमें मत्रको उपजानेवाले द्रव्य स्वेदकर्म उत्तर बस्तिकर्म हित है ॥ ६१ ॥ विष्टामें स्थितहुये वायुमें अरंडीका तेल बस्तिकर्म भेदन करनेवाले स्नेह हितहैं ।।
कफपित्ताविरुद्धं यद्यच्च वातानुलोमनम् ॥ ६२ ।।
सर्वस्थानावृते वाशु तत्कायं मातरिश्वनि ॥ और कफपित्तसे अविरुद्ध और जो वातको अनुलोमन करनेवाला औषधहै ॥ ६२ ॥ सो सब स्थानों में आच्छादितहुये वायुमें शीघ्र करना योग्यहै ।।
अनभिष्यन्दि च स्निग्धं स्रोतसां शुद्धिकारणम्॥६३ ॥पाचना वस्तयःप्रायो मधुराः सानुवासनाः ॥ प्रसमीक्ष्य बलाधिक्यं मृदुकायविरेचनम् ॥ ६४ ॥ रसायनानां सर्वेषामुपयोगःप्रश स्यते ॥ शिलाह्वस्य विशेषेण पयसा शुद्धगुग्गुलोः ॥ ६५ ॥ लेहो वा भाईवस्तद्वदेकादशसितासितः॥ कफको नहीं करनेवाली चिकनी और स्रोतोंकी नहीं शुद्धि करनेवाली औषधभी यहां युक्त करनी योग्य है ॥ ६३ ॥ पाचनसंज्ञक बस्तिकर्म और विशेषकरके मधुररूप अनुबासन बस्तिकर्म हित है और बलकी अधिकताको देखकर कोमल जुलाबको कराना योग्य है ।। ६४ ॥ सब प्रकारके रसायनोंका उपयोग और विशेषकरके शिलाजीतका दूधके संग उपयोग और शुद्ध गूगलका दूध के संग उपयोग ॥६५॥ अथवा ब्राह्मरसायनमें कहा हुआ भाव लेह अथवा ब्राह्मरसायनमें कहा हुआ एकादश सितासित लेह श्रेष्ठ है ॥
अपाने त्वावृते सर्व दीपनं ग्राहि भेषजम् ॥६६॥ वातानुलोमनं कार्य मूत्राशयविशोधनम्॥इति संक्षेपतःप्रोक्तमावृतानांचिकिसितम् ॥ ६७॥ प्राणादीनां भिषकुर्याद्वितयं स्वयमेव तत्
और अपानवायुकरके आच्छादित हुये वायुमें अग्निको जगानेवाला और कब्जको करनेवाला ॥६६॥वातको अनुलोमित करनेवाला और मूत्राशयको शोधनेवाला औषव करना योग्यहै ऐसे आवृतोंका औषध संक्षेपसे कहा॥६७॥प्राण आदि पाचों आवृतोंके औषधको वैद्य आपही विचारके करै।।
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