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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७००) अष्टाङ्गहृदयेशूल राग चभका दाह इन्होंमें जोकोंसे रक्तको निकास और चिमचिमाहट खाज शूल दोष इन्होंसे अन्वितहुये रक्तको सींगी और तूंबीके द्वारा निकासै ॥२॥ देशसे अन्यदेशमें जानेवाले . रक्तको पछने करके अथवा शिरामोक्ष करके निकासै ।। अङ्गम्लानौ तु न स्राव्यं रूक्षं वातोत्तरं च यत्॥३॥गम्भीरं श्वयधुं स्तम्भं कम्पस्नायुशिरामयान्॥म्लानिमन्यांश्च वातो स्थान्कुर्याद्वायुरसृक्क्षयात् ॥ ४॥ और अंगकी ग्लानिमें रक्तको नहीं निकासे और रूखे वातकी अधिकतासे संयुक्त रक्तकोभी निकासना योग्य नहीं है ॥ ३ ॥ गंभीर शोजा स्तंभ कंप स्नायुरोग शिरारोग ग्लानि वातसे उपजे अन्यरोग इन्होंको रक्तके क्षयसे वायु करता है ॥ ४ ॥ विरेच्यः स्नेहयित्वा तु स्नेहयुक्तैविरेचनैः॥ विरेचन के योग्य मनुष्यको प्रथमस्नेहित करके पीछ स्नेहसे संयुक्त किये विरेचन द्रव्योंकरके जुलाबका देना योग्यहै ॥ वातोत्तरे वातरक्त पुराणं पापयेघृतम् ॥ ५॥ वायुकी अधिकतावाले वातरक्तमें पुराने घृतको पानकरावै ॥ ५॥ श्रावणीक्षीरकाकोलीक्षीरिणीजीवकैः समैः ॥ सिद्धं सर्षपकैः सर्पिः सक्षीरं वातरक्तनुत् ॥६॥ गोरखमुंडी क्षीरकाकोली खिरनी जीवक सरसों ये समानभाग ले इन्होंके कल्कमें सिद्ध किया घत इसके संग वातरक्तको नाशताहै ॥ ६ ॥ द्राक्षामधूकवारिभ्यां सिद्धं वा ससितोपलम् ॥ घृतं पिबेत्तथा क्षीरं गुडूचीस्वरसे शृतम् ॥७॥ दाख और मुलहटीके पानीमें सिद्धकिये घृतको मिसरीसे संयुक्तकर पवि अथवा गिलोयके स्वरसमें पकायेहुये दूधको पावै ॥ ७ ॥ तैलं पयः शर्करां च पाययेद्वा सुमूछितम् ॥ अथवा तेल दूध खांड इन्होंको मिलाके पान करावै ॥ वलाशतावरीरास्नादशमूलैः सपीलुभिः॥८॥ श्यामरण्डस्थिराभिश्च वातातिनं शृतं पयः॥ धारोष्णं मूत्रयुक्तं वा क्षीरं दोषानुलोमनम् ॥ ९॥ और खरेहटी शतावरी दशमूल पीलू इन्होंकरके ॥ ८ ॥ और मालविका निशोत अरंड शालपर्णी इन्होंकरके पकाया दूध वातकी पीडाको नाशता है और गायके थनोंसे गरम गरम निकसाहुआ - दूध गोमूत्रयुक्त दोषांको अनुलोमित करता है ।। ९॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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