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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम्। (६७७) सितातैलकृमिन्नानि धान्यामलकपिप्पलीः॥ लिहानः सर्वकुष्ठानि जयत्यतिगुरूण्यपि ॥४९॥ मिसरी तेल वायविडंग आंवला लोहेका मैल पीपल इन्होंको खानेवाला मनुष्य कष्टरूप सब प्रकारके कुष्टको जीतताहै ॥ ४९॥ मुस्तं व्योषं त्रिफला मञ्जिष्ठादारुपञ्चमूले द्वे।सप्तच्छदनिम्बत्व क्सविशालाचित्रकोमूर्वा॥५०॥ चूर्ण तर्पणभागैर्नवभिः संयो जितं समध्वंशम् ॥नित्यं कुष्ठनिबर्हणमेतत्प्रायोगिकं खादन्॥ ॥ ५९ ॥ श्वय, सपाण्डुरोगं श्वित्रं ग्रहणीप्रदोषमासि ॥ व भगन्दरपिडकाकण्डूकोठापचीहन्ति ॥ ५२॥ नागरमोथा सूठ मिरच पीपल त्रिफला मंजीठ देवदारु दशमूल शातला नींबकी छाल इन्द्रायण चीता मूर्वा ॥ ५० ॥ नत्र तर्पण भागों करके समान शहदसे संयुक्त किया यह चूर्ण कुष्ठको दूरकरताहै और इसको प्रयोगसे खानेवाला मनुष्य ॥ ५१ ॥ शोजा पांडुरोग चित्ररोग ग्रहणीदोष बवासीर वर्मरोग भगंदर फुनसी खाज कुष्ठरोग अपची इन्होंको नाशताहै ।। ५२ ॥ रसायनप्रयोगेण तुवरास्थीनि शीलयेत् ॥ भल्लातकं बाकुचिकां वह्निमूलं शिलाह्वयम् ॥ ५३॥ रसायनके प्रयोगकरके देवशिरसके फलकी गुठली भिलावां अथवा वावची अथवा चीताकी जड अथवा शिलाजीत इन्होंका अन्यासकरै ।। ५३ ।।। इति दोषे विजितेऽन्तस्त्वक्स्थे शमनं बहिः प्रलेपादिहितम् ॥ तीक्ष्णालेपोक्लिष्टं कुष्ठं हि विवृद्धिमेति मलिने देहे ॥५४॥ इसप्रकारकरके भीतरसे जीतेडये और त्वचामें स्थितहुये दोषमें बाहिर शमनरूप लेप आदि हित हैं क्योंकि तीक्ष्ण लेप करके उक्लेशको प्राप्तहुआ कुष्ट दोषसे संयुक्त हुये देहमें वृद्धिको प्राप्त होताहै । ५४ ॥ स्थिरकठिनमण्डलानां कुष्ठानां पोटलैर्हितःस्वेदः ॥ स्विन्नोत्सन्नं कुष्ठं शस्त्रैलिखितं प्रलेपनैर्लिम्पेत् ॥ ५५॥ स्थिर और कठोर मंडलोंवाले कुष्ठोंको पोटलियोंकरके पसीना देना हितहै और पसीने उत्पन्नहुये और शस्त्रों करके लिखित हुए कुष्ठको लेपोंकरके लीभै ।। ५५ ।।। येषु न शस्त्र क्रमते स्पर्शेन्द्रियनाशनेषु कुष्ठेषु ॥ तेषु निपात्यः क्षारो रक्तं दोषं च विस्राव्यम् ॥ ५६ ॥ स्पर्श और इन्द्रियके नाशनेवाले कुष्टोंमें शस्त्र काम न देवे तो तिन्होंमें रक्त और दोषको झिराके खारका देना योग्यहै ॥ ५६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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