SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 734
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६७१) मिरव्यङ्गग्रहणीश्वित्रकामलाः॥६॥ भगन्दरमपस्मारमुदरं प्र दरंगरम्॥अर्थोऽस्रपित्तमन्यांश्च सुकृच्छ्रान्पित्तजान्गदान॥७॥ परवल, नींब, कुटकी, दारुहलदी, पाठा, धमासा ॥ २ ॥ पित्तपापडा त्रायमाण ये सब चार चार तोल लेकर पश्चात् ५१२ तोले पानीमें पकावै, जब आठवां भाग शेष रहै तब एक २ तोले प्रमाण करके ॥ ३॥ त्रायमाण नागरमोथा चिरायता इंद्रजव पीपल चंदन इन्होंको मिलावै और ४८ तोले घृतको पकावै यह तिक्तवृत ॥ ४ ॥ पित्त कुष्ट विसर्प फुनसी दाह तृषा भ्रम खाज पांडु रोग गंडरोग दुष्टनाडीव्रण अपचीरोग ॥ ५ ॥ विस्फोट विद्रधी गुल्म शोजा उन्माद मद हृद्रोग तिमिररोग व्यंगरोग संग्रहणी श्वित्ररोग कामला ॥ ६ ॥ भगंदर अपस्मार उदररोग प्रदररोग गर बवासीर रक्तपित्त और कष्टसाध्यरूप और पित्तसे उपजे अन्यरोग इम सबोंको जीतताहै ॥ ७ ॥ सप्तच्छदः पर्पटकः शम्याकः कटुका वचा॥त्रिफला पद्मकंपाठा रजन्यौ सारिवेकणे ॥ ८॥ निम्बचन्दनयष्ट्याह्वविशालेन्द्रयवामृताः॥किराततिक्तकं सेव्यं वृषो मूर्वा शतावरी॥९॥ पटोलातिविषामुस्तात्रायन्ती धन्वयासकम् ॥तैर्जलेऽष्टगुणेसपिर्द्विगुणामलकारसे ॥१०॥ सिद्धं तिक्तान्महातिक्तं गुणैरभ्यधिकं मतम् ॥ शातला पित्तपापडा अमलतास कुटकी वच त्रिफला पद्माख पाठा हलदी दारूहलदी शारिवा रक्तशारिवा छोटी पीपल बडी पीपल ॥ ८ ॥ नीव चंदन मुलहटी इन्द्रायण इन्द्रयव गिलोय चिरायता खश वासा मूर्वा शतावरी ॥ ९ ॥ परवल अतीश नागरमोथा त्रायमाण धमासा इन्होंके कल्कों करके आठगुने पानीमें और दुगुने आमलाके रसमें सिद्ध किया घत ॥ १० ॥ तिक्तपनेस मुनिजनान महातिक्तनामवाला मानाहै यह गुणोंमें पूर्वोक्त घृतसे अधिक है ॥ . कफोत्तरे घृतं सिद्धं निम्बसप्ताह्वचित्रकैः॥ ११ ॥ कुष्ठोषणवचाशालप्रियालचतुरङ्गुलैः॥ __ और कफकी अधिकतावाले कुष्ठमें नींब शातला चीता ॥ ११ ॥ कुठ मिरच वच शाल चिरोंजी अमलतास इन्हेंोंकरके सिद्ध किये घृतको पीवै ।। सर्वेषु चारुष्करजं तौवरं सार्षपं पिबेत् ॥ १२॥ स्नेहं घृतं वा कृमिजित्पथ्याभल्लातके शृतम् ॥ आर सब प्रकारके कुष्टोंमें भिलावांसे उपजे अथवा तूवरसे उपजे अथवा सरसोंसे उपजे स्नेहको पीवै ॥ १२ ॥ अथवा वायविडंग हरडै भिलावाँ इन्होंसे पककिये घृतको पीवै ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy