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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ६५२ ) अष्टाङ्गहृदये किये तो पीवै ॥ १२७ ॥ और सन्निपातोदरमें सूंठ मिरच पीपल जवाखार सेंधानमक इन्होंसे संयुक्त किया तत्र हित है और शहद तिल वच सूंठ शतावरी कूट सेंधानमक इन्होंसे संयुक्त किया तत्र ॥ १२८ ॥ प्लीहोदरमें हित है और हाऊवेर अजवायन नमक अर्जुनवृक्ष इन आदिकरके युक्त किया त वृद्धोदर में हित है और पीपल तथा शहदसे संयुक्त किया तक छिद्रोदरमें हितहै और सूंठ मिरच पीपल इन्होंसे संयुक्त किया तक्र जलोदरमें हितहै ॥ १२९ ॥ गौरवारोचकानाहमन्दवह्नयतिसारिणाम् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तकं वातकफार्तानाममृतत्वाय कल्पते ॥ १३० ॥ गौरव अरोचक आनाह मंदाग्नि अतिसार इन रोगोंवालोंको तथा वात और कफसे पीडित मनुष्यों को दिया हुआ तक अमृत के समान कल्पित किया जाता है ॥ १३० ॥ प्रयोगाणां च सर्वेषामनुक्षीरं प्रयोजयेत् ॥ स्थैर्य कृत्सर्वधातृनां बल्यं दोषानुबन्धहृत् ॥ भेषजोपचिताङ्गानां क्षीरमेवामृतायते १३१ ॥ सब प्रयोग के पीछे दूधको अथवा तक्रको प्रयुक्त करै वह तक सब धातुओं की स्थिरताको करताहै और बलमें हित है और दोषों के अनुबंधको हरताहै औषधकरके बढे हुये शररिवाले मनुष्यों के दूधही अमृतके समान है ॥ १३१ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्य पंडित रविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिता भाषाटीकायांचिकित्सितस्थाने पञ्चदशोऽध्यायः ॥ १५ ॥ षोडशोऽध्यायः । -DOC अथातः पाण्डुरोगचिकित्सितं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर पांडुरोगचिकित्सितनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । पाण्ड्रामयी पिवेत्सर्पिरादौ कल्याणका ह्वयम् ॥ पञ्चगव्यं महातिक्तं शतं वाऽऽरग्वधादिना ॥ १ ॥ पांडुरोगी आदिमें कल्याणनामवाला और पञ्चगव्यनामवाला और महातिक्तनामवाला अथवा आरग्वधादिगणमें पकायाहुआ घृत पीवै ॥ १ ॥ दाडिमात्कुडवो धान्यात्कुडवार्द्ध पलं पलम् ॥ चित्रकाच्छृङ्गवेराञ्च्च पिप्पल्यर्द्धपलं च तैः ॥ २ ॥ कल्कितैर्विशतिपलं घृतस्य • सलिलाढके ॥ सिद्धं हृत्पाण्डुगुल्मार्शः प्लीहवातकफार्तिनुत् ॥ ३ ॥ दीपनं श्वासकासनं मूढवातानुलोमनम् ॥ दुःखप्रसविनीनां च वन्ध्यानां च प्रशस्यते ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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