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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६३१) गुल्मिनां त्रेसनं हितम् ॥ वृद्धिविद्रधिशूलेषु वातव्याधिषु चा मृतम् ॥ ९॥ पीपली आमला दाख मालाविका निशोथ ये सब चार चार तोले लेवै, अरंडीका तेल और वृत ६४ चौसठ चौसट तोले लेवै इन्होंको छः गुने दूधमें पकावै ॥ ८९ ॥ सिद्ध हुआ यह मिश्रक म्नेह गुल्मवालोंको सुंदर जुलाब है, और वृद्धिरोग विद्रधी शूल वातव्याधिमें अमृतरूपहै ।। ९० ॥ पिबेद्वा नीलिनीसर्पिर्मात्रया द्विपलीकया। तथैव सुकुमाराख्यं घृतान्यौदरिकाणिवा ॥ ९१ ॥ अथवा ८ तोले मात्रा करके पूर्वोक्त नीलिनीघृतको पावै अथवा आठ तोले प्रमाणसेही सुकुमार नामवाले घृतको पावै अथवा पेट रोगोंकी चिकित्सामें कहेहुये घृतोंको पावै ॥ ९१ ॥ द्रोणेऽम्भसः पचेदन्त्याः पलानां पञ्चविंशतिम्॥चित्रकस्य तथा पथ्यास्तावतीस्तद्रसे नुते॥ ९२ ॥ द्विप्रस्थे साधयेत्पूते क्षिपेद. न्तीसमं गुडम् ॥ तैलात्पलानि चत्वारि त्रिबृतायाश्च चूर्णतः॥ ॥ ९३॥ कणाकर्षों तथा शुण्ठयाः सिद्धे लेहे तुशीतले।मधुतैल समं दद्याच्चतुर्जाताच्चतुर्थिकाम्॥९४॥ अतो हरीतकीमेकांसावलेहपलामदन ॥ सुखं विरिच्यते स्निग्धो दोषप्रस्थमनामयः॥ ॥९५॥ गुल्महृद्रोगदुर्नामशोफानाहगरोदरान् ॥ कुष्ठोत्क्लेशारुचिप्लीहग्रहणीविषमज्वरान् ॥ ९६ ॥घ्नन्ति दन्तीहरीतक्यापाण्डुतां च सकामलाम् ॥ और १०२४ तोले पानीमें १०० तोले भर जमालगोटाकी जडको १०० तोले चीताकी जडको १०० हरडोंको पकावै जब रस झिरने लगै ॥९२ ॥ अर्थात् १२८ तोले शेष रहै तब वस्त्रमांहके छानिके तिसमें १०० तोले गुड और १६ तोले तेल १६ तोले निशोथका चूर्ण।। और २ तोले पीपल २ तोले सूंठ इन्होंको मिलानेसे जब लेह सिद्ध हो जावे तब शीतल होने १६ तोले शहद और दालचीनी तेजपात इलायची नागकेशर इन्होंका चूर्ण ४ तोले ॥ ९४ ॥ पीछे ४ तोले अवलेहसे संयुक्त करी एक हरडको खाताहुआ मनुष्य स्निग्धरूप और रोगसे रहित होकर ६४ तोले भर मलको गुदाके द्वारा निकासताहै ।। ९५ ॥ यह दंतीहरीतकी गुल्म हृद्रोग बवासीर शोजा अफारा गरोदर कुष्ठ उत्क्लेश अरुची प्लीहरोग ग्रहणीदोष विषमज्वर ॥ ९६ ॥ और पांडुरोग तथा कामला इन्होंको नाशती है ।। सुधाक्षीरद्रवं चूर्णं त्रिवृतायाः सुभावितम् ॥ १७॥ कार्षिकं मधुसर्पिा लीडा साधु विरिच्यते ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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