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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६२५) विवृद्धं यदि वा पित्तं सन्तापं वातगुल्मिनः॥४३॥ कुर्याद्विरेचनीयोऽसौ सस्नेहैरानुलोमिकैः ॥ तापानुवृत्तांवेवं च रक्तं तस्याऽवसेचयेत् ॥४४॥ जो कदाचित् वातगुल्मवालेके बढाहुआ पित्त संतापको करै ॥ ४३ ॥ तब वह वातगुल्मरोगी वरचेनके योग्य स्नेहोंसे संयुक्त अनुलोमन करनेवाले औषधोकरके जुलाबके योग्यहै, जो जुलाब लेनेसेभी सतार नहीं हटै तो तिस मनुष्यके रक्तको निकासै ॥ ४४ ॥ साधयेच्छुद्धशुष्कस्य लशुनस्य चतुःपलम्॥क्षीरोदकेष्टगुणि. ते क्षीरशेषं च पाचयेत् ॥ ४५॥ वातगुल्ममुदावर्तं गृध्रसीं बिषमज्वरम्॥हृद्रोगं विद्रधि शोषं साधयत्याशु तत्पयः॥ ४६॥ शुद्ध और सूखे लहसनको १६ तोले ले पीछे आठगुने दूध और पानीमें पकावै जब दुधमात्र शेषरहै ॥ ४५ ॥ तिसको पीवै यह वातगुल्म उदावर्त गृध्रसीवात विषमज्वर हृद्रोग विद्रधी शोष इन्होंको तत्काल साधित करताहै ।। ४६ ।। तैलं प्रसन्नागोमूत्रमारनालं यवाग्रजः।। गुल्मं जठरमानाहं पीतमेकत्र साधयेत् ॥ ४७॥ प्रसन्नामदिरा गोमूत्र कांजी जवाखार इन्होंमें सिद्ध किया तैल पिया जावे तो गुल्म पेटरोग अफारा इन्होंको नाशताहै ॥ ४ ॥ चित्रकग्रन्थिकैरण्डशुण्ठीक्काथः परं हितः॥ शूलानाहविबन्धेषुसहिङ्गविडसैन्धवः ॥४८॥ चीता पीपलामूल अरंड सूंठ इन्होंका सेंधानमक वायविडंग मनियारीनमक इन्होंसे संयुक्त के पा काथ शूल अफारा विबंधमें हितहै ॥ ४८ ॥ पुष्करैरण्डयोर्मूलं यवधन्वयवासकम् ॥ जलेन कथितं पीतं कोष्टदाहरुजापहम् ॥ ४९॥ पोहकरमूल अरंडमूल जब धमासा इन्होंका पानीमें काथ बना पिया जावे तो कोष्ठकी दाह और शूलको नाशताहै ॥ ४९॥ वाट्याद्वैरण्डदर्भाणां मूलं दारु महौषधम् ॥ पीतं निःक्वाथ्य तोयेन कोष्टपृष्ठांसशूलजित् ॥ ५० ॥ पोहकरमूल अरंड डाभ इन्होंकी जड देवदार सूंठ इन्होंका पानीमें वाथ बना पिया जावे तो कोष्ठ पृष्ठभाग कंधाके शूलको जीतताहै ॥ ५० ॥ ४० For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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