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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६२०) अष्टाङ्गहृदयेदीप्तहुई अग्निमें वातके गुल्ममें वायु और विष्ठाका विबंध होवे तब बृंहण और स्निग्ध और गरम अन्नपानोंको देवै ॥ ५ ॥ जथवा बारंबार स्नेहके पानको देवै और कफपित्तकी रक्षा करनेवाले मनुष्यके वातजगुल्ममें अनुवासनसहित निरूहबस्ति प्रयुक्त करनी योग्यहै ॥ ६ ॥ बस्तिकर्म परं विद्यागुल्मन्नं तद्धि मारुतम् ॥ स्वस्थाने प्रथम जित्वा सद्यो गुल्ममपोहति ॥७॥तस्मादभीक्ष्णशो गुल्मानिरूहैःसानुवासनैःप्रयुज्यमानैःशाम्यन्ति वातपित्तकफात्मकाः॥८॥ अतिशयकरके बस्तिकर्म गुल्मको नाशनेवाला जानना चाहिये, क्योंकि पक्वाशयमें प्रथम पवनको जीतकर तत्काल गुल्मको दूर करताहै ॥ ७ ॥ तिसकारणसे प्रयुक्त किये अनुवासनसहित निरूहोंकरके वात पित्त कफसे उपजे गुल्म वेगसे शांत होजातहैं ॥ ८॥ . हिमुसौवर्चलव्योषबिडदाडिमदीप्यकैः।पुष्कराजाजिधान्याम्ल वेतसक्षाराचित्रकैः॥९॥शठीवचाजगन्धैलासुरसैदधिसंयुतैः॥ शूलानाहहरं सर्पिः साधयेद्वातगुल्मिनाम् ॥१०॥ हींग कालानमक झूठ मिरच पीपल मनियारीनमक अनारदाना अजमोद पोहकरमूल जीरा : धनियां अम्लवेतस जवाखार चीता ॥ ९॥ इन्होंकरके कचूर वच तुलसी इलायची संभालू दही इन्होंकरके सिद्ध किया घृत वातसे उपजे गुल्मवालोंके शूल और अफारेको हरताहै ॥ १० ॥ हपुषोषणपृथ्वीकापञ्चकोलकदीप्यकैः ॥ साजाजिसैन्धवैर्दना दुग्धेन च रसेन च ॥११॥दाडिमान्मूलकाकोलात्पचेत्सर्पिनिहन्ति तत् ॥ वातगुल्मोदरानाहपार्श्वहृत्कोष्ठवेदनाः ॥१२॥ योन्यर्थीग्रहणीदोषकासश्वासारुचिज्वरान् ॥ हाऊबेर मिरच कलौंजी पीपल पीपलामूल चव्य चीता सूठ अजमोद जीरा सेंधानमक दही दूध ॥११॥अनार मूली बेर इन्होंका रस इन्होंकरके पकाया हुआ घृत वातगुल्म पेटका अफारा पशली पीडा हृद्रोग कोष्टपीडा॥१२॥योनिरोग बवासीर ग्रहणीदोष खांसी श्वास अरुची वरको नाशताहै ।। दशमूलं बलां कालां सुषवीं द्वौ पुनर्नवौ ॥१३॥ पौष्करैरण्डरास्नाश्वगन्धभां→मृताशठी॥पचेद्गन्धपलांशश्च द्रोणेऽपां द्विपलोन्मितम् ॥१४॥ यवैः कोलैः कुलत्थैश्च माषैश्च प्रास्थिकैः सह ॥ क्वाथेऽस्मिन्दधिपात्रे च घृतप्रस्थं विपाचयेत्॥१५॥स्वरसैर्दाडिमाम्रातमातुटुंगोद्भवैर्युतम्॥तथातुषाम्बुधान्याम्लयुतैः श्लक्ष्णैश्च कल्कितैः॥१६॥भातुम्बुरुषग्रन्थानान्थरास्नाग्नि धान्यकैः॥ यवानकयवान्यम्लवेतसासितजीरकैः ॥ १७ ॥ अ-.. For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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