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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५९४ ) अष्टाङ्गहृदये ञ्जीर्णे स्यान्मधुराशनः ॥ ५५ ॥ वातश्लेष्मामयान्सर्वान्हन्या द्विषगरांश्च सः ॥ हींग कुटकी वच कालाअतीस इंद्रजव गोखरू पीपल पीपलामूल चव्य चीता सूंठ ये एक एक तोलाभर लेवै और पांचोंनमक चार तोलाभर लेवै ॥ ५३ ॥ घृत १६ तोले तेल १६ तोले दही १२८ तोले इन्होंमें पूर्वोक्त औषधोंको कूटके क्वाथ बनावे कोमल अग्निके द्वारा प्रविष्ट हुये रसको होजानेमें ॥ ५४ ॥ पीछे भीतरही धूमा रहै ऐसे द्रव्यको कलशेमें दग्धकर और चूरन बना और घृतसे संयुक्तकर एक तोलेभरको पीवै पीछे जीर्ण हो जाने मधुर पदार्थोंको भोजन करनेवाला मनुष्य ॥ ५५ ॥ सबप्रकारके बात और कफके रोगोंके सब प्रकारके विप और गरौंको नाशता है || भूनिम्बं रोहिणी तिक्तां पटोलं निम्बपर्पटम् ॥ ५६ ॥ दग्ध्वा मापिसूत्रेण पिवेदग्निविवर्द्धनम् ॥ द्वे हरिद्रे वचा कुष्ठं चित्रकःकटुरोहिणी ॥ ५७ ॥ मुस्ता च छागमूत्रेण सिद्धः क्षारोऽग्निवर्द्धनः ॥ और चिरायता कुटकी हरडे परवल नींव पित्तपापडा || १६ || इन्होंको दग्धकर भैसके मूत्रके संग पीवै, यह अग्निको बढाता है दोनो हलदी वच कूठ चीता कुटकी || १७ || नागरमोथा इन्होंका बकरी के मूत्र में सिद्ध किया खार अग्निको बढाता है || चतुष्पलं सुधाकाण्डात्रिपलं लवणत्रयात् ॥ ५८ ॥ वार्ताककुडवं चाकदष्टौ द्वे चित्रकात्पले ॥ दग्ध्वा रसेन वार्ताका गुटिका भोजनोत्तराः ॥ ५९ ॥ भुक्तमन्नं पचन्त्यासु कासश्वासार्शसां हिताः ॥ विषूचिका प्रतिश्यायहृद्रोगशमनाश्च ताः ॥ ६० ॥ और थूहरका कांडा १६ तोले और सेंधानमक कालानमक मनियारीनमक ॥ १८ ॥ ये बारह १२ तोले वार्ताकु १६ तोले दाख ३२ तोले चीता ८ तोले इन्होंको दग्ध कर पीछे वार्ताकुके समें करी और भोजन के उपरांत खाई गोली ॥ ५९ ॥ भोजन किये अन्नको तत्काल पकाती है और खांसी श्वास बत्रासीरको हित है और हैजा प्रतिश्याय हृद्रोगको शांत करती है ॥ ६० ॥ मातुलुङ्गराठी रास्ता कटुत्रयहरीतकी ॥ स्वर्जिकायावशूकाख्यौ क्षारौ पञ्च पटूनि च ॥ ६१ ॥ सुखाम्बुपीतं तच्चूर्ण बलवर्णाशिवर्द्धनम् ॥श्लैष्मिके ग्रहणीदोषे सवाते तैर्धृतं पचेत् ॥ ६२ ॥ धान्वन्तरं षट्पलं च भल्लातकघृताभयम् ॥ विजोरा कचूर रायशण सूंठ मिरच पीपल शाजीखार जवाखार मनियारीनमक सेंधानमक काला नमक साधारणनमक सांभरनमक ॥ ६१ ॥ इन्होंका चूर्ण गरमपानीके संग पान किया बल वर्ण अग्निको बढाता है, और वातसे अन्वित कफकरके उपजे ग्रहणी दोषों में विजे.राआदि पूर्वोक्त औष For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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