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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (५७५) मिरच धनियां जीरा अमली कचूर मनियारीनमक अनार धायके फूल पाठा त्रिफला पीपल पीपलामूल चव्य चीता सुंठ ॥ २६ ॥ जवाखार कैथ आम जामनका गूदा अजमोद और मिरच आदिकोंके समान बेलगिरी इन्होंकरके दहीमें तथा मूंगोंके रसमें तथा गुडमें ॥ २७ ॥ तथा लोहमें तथा मिले हुये घृत और तेलमें सिद्ध किया यह अपराजित खल दीपन है पाचन है ग्राही है और । रुचिमें हित है और प्रवाहिकाको नाशता है ।। २८ ।। कोलानां बालबिल्वानां कल्कैः शालियवस्य च ॥ मुद्माषतिलानां च धान्ययूषं प्रकल्पयेत् ॥ २९ ॥ ऐकध्यं यमके भृष्टं दधिदाडिमसारिकम्।।वर्चःक्षये शुष्कमुखं शाल्यन्नं तेन भोज येत् ॥३०॥ दन्नः सरं वा यमके भृष्टं सगुडनागरम् ॥सुरां वा यमके भृष्टां व्यञ्जनार्थ प्रयोजयेत् ॥३१॥ फलाम्लं यमके भृष्टं यूपं गृञ्जनकस्य वा ॥ भृष्टान्वा यमके सक्तून्खादेव्योपावचूर्णितान् ॥३२॥ माषान्सुसिद्धांस्तद्वद्वा धृतमण्डोपसेवनान् ॥ रसं सुसिद्धं पूतं वा छागमेषान्तराधिजम् ॥ ३३ ॥ पचेदाडिमसाराम्लं सधान्यस्नेहनागरम्॥ रक्तशाल्योदनं तेन भुंजानः प्रपिवंश्च तम् ॥३४॥ वर्चःक्षयकृतैराशु विकारैः परि मुच्यते॥ बेर कच्ची वेलगिरी इन्होंके कल्कोंकरके और शालिचावल और यवोंके कल्कोंकरके और मूंग उडद तिल इन्होंके कल्कोंकरके मिश्रित किया और मिलेहुये घृत और तेलमें भुनाहुआ दही और अनारके सारकरके संयुक्त एसा धान्य यूषको कल्पित करै ॥ २९ ॥ विष्ठाके क्षयमें सूखे मुखवाले अतिसार रोगीको तिस पूर्वोक्त यूषकरके शालिचावलोंको खवावै ॥ ३० ॥ मिश्रितकिये घृत और तेलमें भुनाहुआ गुड और सूंठसे संयुक्त दहीके सारको प्रयुक्त करै तेलमें भुंनीहुई मदिराको व्यंजनके अर्थ प्रयुक्त करै ॥ ३१ ॥ अथवा मिश्रित किये घृत और तेलमें भुनाहुआ और खट्टेफलोंकरके अम्ल किये गाजरके यूषको प्रयुक्त करै अथवा मिश्रित किये घृत और तेलमें भुने हुये और झूठ मिरच पीपल करके अवचूर्णित सत्तुओंको खावै ॥ ३२ ॥ अथवा अच्छीतरह सिद्ध किये और घृतके मंडकरके उपसेवित उडदोंको खावै अथवा बकरा मेंढाके भीतरके रसको सिद्ध कर और वस्त्रआदिसे छान ॥ ३३ ॥ और अनारके सारसे संयुक्त कर और धनियां स्नेह सूंठसे मिश्रितकर पकावै तिसके संग रक्त शालिचावलको खाताहुआ और तिसी पूर्वोक्त रसका पान करता हुआ मनुष्य ॥ ३४ ॥ विष्ठाके क्षयसे उपजेहुये विकारोंकरके तत्काल छूट जाताहै ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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