SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 610
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् ।। चारैरशिशिरैर्यवगोधूमभुक्पिबेत् ॥ श्लेष्मिको जालैमासमयं मरिचकैः सह ॥ ९८॥ अभ्यंग उद्वर्तन स्नान वास धूप अनुलेपन करके और स्निग्ध तथा गरम अन्नोंकरके भावितरूप वातकी अधिकतावाला मनुष्य मदिराको पावै ॥ ९६ ॥ और पित्तकी अधिकतावाला मनुष्य अनेक प्रकारके शीतल उपचारोंकरके और मधुर शीतल स्निग्ध अन्नोंकरके भावित हुआ मनुष्य मदिरा पीवे तो शिथिलताको प्राप्त नहीं होता ॥ ९७ ॥ कफकी अधिकतावाला मनुष्य गरमरूप उपचारों करके और मिरचौसे संस्कृत और जांगल देशके मांसोंकरके संयुक्त मदिराको पीवे जब और गेहूंका भोजन करै ॥ ९८ ॥ तत्र वाते हितंमद्यं प्रायः पैष्टिकगौडिकम्॥पित्ते साम्भो मधु कफे मार्कीकारिष्टमाधवम्॥९९॥प्राक्पिबेच्छैष्मिको मयं भुक्तस्योपरि पैत्तिकः ॥ वातिकस्तु पिबेन्मध्ये समदोषो यथेच्छया ॥ १० ॥ वातकी अधिकतामें प्रायताकरके पैष्टिक और गौडिक मद्य हितहै और पित्तकी अधिकतामें जलसे सहित और शहदस सहित मद्य हितहै और कफकी अधिकतामें मार्दीक अरिष्ट माधव ये मद्य रितहैं ॥ ९९ ॥ कफी प्रकृतिवाला मनुष्य भोजनसे पहिले मद्यको पीवै और पित्तकी प्रकृतिवाला मनुष्य भोजनके उपरांत मद्यको पावै और वातकी प्रकृतिवाला मनुष्य भोजनके मध्यमें मद्यको पावै और सब दोषोंके समान प्रकृतिवाला मनुष्य इच्छाके अनुसार मद्यको पीवै ॥ १०० ।। मदेषु वातपित्तनं प्रायो मूछासु चेष्टते ॥ सर्वत्रापि विशेषेण पित्तमेवोपलक्षयेत् ॥ १०१॥ प्रायता करके मदोमें और मूर्छायरोगोंमें वातपित्तको नाशनेवाली चिकित्सा करनी और विशेषकरके सब प्रकारकरके मद और मू»यरोगमें अधिकरूप पित्तकोही जानै ॥ १०१॥ शीताः प्रदेहामणयःसेका व्यजनमारुताः॥सिताद्राक्षेक्षुखर्जूर काश्मयः स्वरसाःपयः॥१०२॥सिद्धं मधुरवर्गेणरसा यूषाःसदाडिमाःषष्टिकाः शालयो रक्ता यवाः सर्पिश्च जीवनम्॥१०३॥ कल्याणकं महातिक्तं षट्पलं पयसाग्निकः ॥ पिप्पल्यो वा शिलाह्र वा रसायनविधानतः॥१०४॥त्रिफला वा प्रयोक्तव्या सघृतक्षौद्रशर्करा ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy