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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् ।। अनूपं जाङ्गलं मांसं विधिनाप्युपकल्पितम्॥मयंसहायमप्राप्यं सम्यक्परिणमेत्कथम् ॥७१॥ सुतीत्रमारुतव्याधिघातिनो लशुनस्य च॥मद्यमांसवियुक्तस्य प्रयोगः स्यात्कियान्गुणः॥७२॥ विधिकरके कल्पित किया अनूपदेशका और जांगलदेशका मांसभी मदिराकी सहायताको नहीं प्राप्तहोवै कैसे अच्छीतरह परिणामको प्राप्त होसकताहै ॥ ७१ ॥ अर्थात् नहीं जीर्ण होता अत्यंत तीव्ररूप वातव्याधिको नाशनेवाले लहसनका प्रयोग मदिरा और मांससे वर्जित मनुष्यको कैसे गुणदायक है अर्थात् अल्पगुण देताहै ॥ ७२ ॥ निगूढशल्याहरणे शस्त्रक्षाराग्निकर्मणि ॥ पीतमयो विसहते सुखं वैद्यविकत्थनाम् ॥ ७३ ॥ अत्यंत प्रणष्ट हुये शल्यको निकासनेमें और शस्त्र खार अग्निके कर्ममें मदिराका पान करनेवाला सुखसे वैद्यके कर्तव्यको सहताहै ॥ ७३ ॥ अनलोत्तेजनं रुच्यं शोकश्रमविनोदकम् ॥न चातः परमस्त्यन्यदारोग्यबलपुष्टिकृत् ॥७४॥ रक्षता जीवितं तस्मात्पेयमास्मवता सदा॥आश्रितोपाश्रितहितं परमं धर्मसाधनम् ॥७५॥ अग्निको अत्यंत तेज करनेवाला और रुचिमें हित शोक और परिश्रमको हरनेवाला मद्य है और इससे उपरांत आरोग्य बल पुष्टिका करनेवाला अन्यपदार्थ नहीं है ॥ ७४ ॥ तिसकारणसे जीवितकी रक्षा करनेवाले बुद्धिमान् मनुष्यको सबकालमें आश्रित और उपाश्रितको हितरूप परम धर्मका साधन अर्थात् उपायरूप मद्य पीना योग्य है ॥ ७९ ॥ स्नातःपणस्य सुरविप्रगुरून्यथास्वं वृत्ति विधाय च समस्त परिग्रहस्य।आपानभूमिमथ गन्धजलाभिषिक्तामाहारमण्डपसमीपगता येत ॥७६॥ स्वास्तृतेऽथ शयने कमनीये मित्र भृत्यरमणीसमवेतः॥स्वं यशः कथकचारणसंधैरुद्धतं निशम यन्नतिलोकम्॥७७॥ विलासिनीनां च विलासशोभि गीतं स नृत्यं कलतूर्यघोषः।काञ्चीकलापैश्चलकिङ्किणीकैः क्रीडाविहडैश्च कृतानुनांदम् ॥७८॥.मणिकनकसमुत्थैराकमर्विचित्रैः सजलविविधलेखक्षौमवस्त्रावृताङ्गैः॥अपि मुनिजनचित्तक्षोभ सम्पादिनीभिश्चकितहरिणलोलप्रेक्षणीभिःप्रियाभिः॥७९॥ स्तननितम्बकृतादतिगौरवादलसमाकुलमीश्वरसम्भ्रमात् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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