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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्रीः॥ भूमिका। देवलोकसे वैद्यकशास्त्रका भूलोकमें आना ॥ आयुर्हिताहितं व्याधेर्निदानं शमनं तथा। विद्यते यत्र विद्वद्भिः स आयुर्वेद उच्यते ॥ जिसके द्वारा आयुका शुभाशुभ व्याधिका निदान व तिसके दूर करनेका उपाय जानाजाय विद्वान् 'तिसको आयुर्वेद कहते हैं आयुर्वेदशब्दकी व्युत्पत्ति यह है, यथा,-आयुस् ( जीवितकाल, ) विद धातु ( ज्ञानार्थ,) जिस करके आयुसम्बन्धीय ज्ञान प्राप्त होताहै, इस कारण इसका नाम आयुर्वेद है। अनेक तंत्रोंको देख भालकर यह बतलाया जाताहै कि आयुर्वेद क्रमशः किस प्रकारसे पृथ्वी‘पर आया। ___ सबसे पहले पितामह ब्रह्माजीने आयुर्वेदकं प्रकाशित करनेकी अभिलाषासे लक्ष श्लोकमें ब्रह्मसंहिता नामक आयुर्वेदका ग्रंथ बनाया. इस संहिताको बनाकर भगवान् ब्रह्माजीने महाबुद्धिमान् -सर्वकार्यकुशल दक्ष प्रजापतिजीको यह समस्त संहिता पढादी ।। पश्चात् क्रिया जाननेवाले प्रजापति दक्षजीने यह संहिता, देवताओंमें श्रेष्ठ सूर्यसे उत्पन्न हुए दोनों अश्विनीकुमारोंको पढाई। .. अश्विनीकुमारोंने प्रजापति दक्षजीसे आयुर्वेद सीखकर वैद्योंकी प्रतिपत्ति बढ़ानेको “ अश्विनीकुमारसंहिता " नामक एक अत्युत्तम वैद्यक ग्रंथ बनाया । ___एक समय महादेवजीने क्रोधमें आकर ब्रह्माजीका मस्तक छेदन किया, तब अश्विनीकुमारने अपनी अद्भुत विद्याके बलसे उसको फिर जहांका तहां लगादिया, तबसे इन दोनोंकोभी यज्ञभाग मिलनेलगा। जब देवासुरसंग्राममें देवतालोग अत्यन्त घायल होजाते, तब यह उनको एकही दिनमें भला चंगाकर देतेथे । इन्द्रके भुजस्तम्भ रोगको इन्होंनेही आरोग्य किया । चंद्रमाजी जब सोममण्डलसे भ्रष्ट होकर गिरे व आहत हुए तब इन्हीं वैद्यराजने उनको आराम किया इन्होंनेही सूर्यको दन्तरोगसे, भगदेवताको नेत्ररोगसे और चंद्रमाको राजयक्ष्मा रोगसे छुटाया। इन्द्रियोंके वश हुए भृगुपुत्र महामुनि च्यवन जब जराग्रस्त हुए, तब इन्होंनेही चिकित्सा करके उनको दुवारा बलवीर्य सम्पन्न व सुन्दरतायुक्त नई अवस्थावाला कियाथा । ऐसेही अनेक कार्योंके करनेसे वैद्य श्रेष्ठ-दोनों अश्विनीकुमार इन्द्रादि देवताओंके पूजनीय हुएथे। , . . अश्विनीकुमारोंके ऐसे अद्भुतकार्योंको देखकर इन्द्रको उनसे आयुर्वेद पढ़नेका अत्यन्त अभि लाष हुआ । अश्विनीकुमारोंनेभी देवराजकी प्रार्थनाको अंगीकार कर उनको समस्त आयुर्वेद सिखादिया । फिर इन्द्रने भात्रेयादि मुनियोंको समस्त आयुर्वेद पढ़ाया। For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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