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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४९८) अष्टाङ्गहृदये__ आर १२४ तोले पानीमें ४०० तोले भर बडीखरैहटीको चतुर्थीश शेष रहे ऐसा पकावै ॥ १२० । पछि तिस शेष रहे पानी के समान घत और दूध मिलाके पकावै, और पकानेमें दो दो तोलेभर गंगेरन खरेहटी मुलहटी सांटी ॥ १२१॥ पौंडा कंभारी चिरौंजी कौंचके बीज असगंध मिसरी शतावरी मेदा महामेदा गोखरू ॥ १२२ ॥काकोली क्षरिकाकोली श्वेतविदारीकंद सफेतजीरा श्याहजीराइन्होंके कल्कको मिलावै, यह नागबलावृत रक्तपित्त क्षतक्षय ॥ १२३ ।। तृष्णा भ्रम दाहको नाशता है, बल और पुष्टिको अत्यंत करता है और वर्ण आयु पराक्रममें 'हित है और शरीरमें बली और बालोंके सफेदपनेको नाशता है ॥ १२४ ॥ इस घृतको छः महीनोंतक सेवन करके वृद्धमनुष्यभी जवानके समान आचरण करता है ।। दीप्तेऽग्नौ विधिरेष स्यान्मन्दे दीपनपाचनः ॥ १२५॥ यक्षमोक्तः क्षतिनां शस्तौ ग्राही शकृति तु द्रवे ॥ और दीप्तअग्निमें यह विधि हितहै और मंदअग्निमें राजयक्ष्मा चिकित्सितमें कहा दीपनपाचन विधि ॥ १२५ ॥ क्षतवालोंको श्रेष्ठ है और द्रवरूपविष्ठामें ग्राही अर्थात् कव्ज करनेवाला उपक्रम हितहै ॥ दशमूलं स्वयंगुप्तां शंखपुष्पी शठी बलाम् ॥ १२६॥ हस्तिपिप्पल्यपामार्गपिप्पलीमूलचित्रकान्॥भाङ्गीपुष्करमूलंचद्विपलां शान्यवाढकम् ॥१२७॥ हरीतकीशतं चैकं जले पञ्चाढके पचेत्॥ यवस्विन्ने कषायं तं पूतं तच्चाभयाशतम् ॥ १२८॥ पचेद्गुडतुलां दत्त्वा कुडवं च पृथग्घृतात् ॥ तैलात्सपिप्पली चूर्णात्सिद्धशीते च माक्षिकात्॥१२९॥ लेहं द्वे चाभये नित्य मतःखादेद्रसायनात्।तद्वलीपलितं हन्याद्वायुर्बलवर्द्धनम्॥ ॥ १३० ॥ पञ्चकासान्क्षयं श्वासं सहिध्मं विषमज्वरम्॥ मेह गुल्मग्रहण्य♛हृद्रोगारुचिपीनसान् ॥१३१॥ अगस्तिविहितं धन्यमिदं श्रेष्ठं रसायनम् ॥ दशमूल कौंचके बीज शंखपुष्पी कचूर खरेहटी ॥ १२६ ॥ गजपीपली ऊंगा पीपलामूल चीता भारंगी पोहकरमूल ये आठ आठ तोलेभर लेवै और यव २५६ तोले ले ॥ १२७ ॥ हरडै १०० को १२८० तोले पानीमें पकावै जब स्वेदितरूप यव होजावें, तब तिसक्काथको वस्त्रमें छानै और तिन १०० हरडोंको ॥१२८॥ ४०० तोले गुड और १६ तोले घृत १६ तोले तेल और पीपलकाचूर्ण १६ तोले ले इन्होंकेसंग फिर पकावै सिद्धहुये और शीतल होने तिस लेहमें १६ तोले शहदको मिलावै ॥ १२९ ॥ पीछे तिस लेहको और दो हरडोंको नित्यप्रति खावै यह रसायन होनेसे शरीरकी वलियोंको और बालोंके सफेदपनेको नाशता है और वर्ण आयु बलको बढाताहै For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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