SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 556
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४९३) खांसीवाला और संधि तथा हड्डीमें शूलवाला मनुष्य महुआ मुलहटी दाख दालचीनी वंशलोचनः पीपल खरेहटी इन्होंमें घृत और शहद मिलाके चाटै ॥ ८ ॥ त्रिजातमर्धकर्षांसं पिप्पल्यर्धपलं सिता॥द्राक्षा मधूक खर्जरं पलांशं श्लक्ष्णचूर्णितम् ॥ ८१॥ मधुना गुटिका नन्ति ता वृष्याः पित्तशोणितम् ॥कासश्वासारुचिच्छर्दिमूर्छाहिध्माव. मिभ्रमान् ॥ ८२॥ क्षतक्षयस्वरभ्रंशप्लीहशोफाढ्यमारुतान् ॥ रक्तनिष्ठीवहृत्पावरुपिपासाज्वरानपि ॥ ८३ ॥ दालचीनी इलायची तेजपात ये आधे आधे तोले पीपल ४ तोले और मिसरी दाख मुलहटी खजूर ये ४ चार चार तोले इनोंका मिहीन चूरण कर ॥ ८१ ॥ शहदमें गोलियाँ बनावै ये गोली धातुको पुष्ट करती हैं और रक्तपित्त खांसी श्वास अरुची छर्दि मूर्छा हिचकी भ्रम ॥८२॥ क्षत क्षय स्वरभंश प्लीहरोग सोजा वातरक्त रक्तका थूकना हृत्पीडा पशलीपीडा पिपासा ज्वरको नाशताहै ८३ वर्षाभूशर्करारक्तशालितण्डुलजंरजः॥रक्तष्ठीवी पिबेत्सिद्धंद्राक्षारसपयोघृतैः॥८४ ॥ मधूकमधुकक्षीरसिद्धं वा तण्डुलीयकम् ॥ यथा स्वमार्गविसृते रक्ते कुर्याच्च भेषजम् ॥ ८५॥ शांठी खांड लालशालीचावलोंकी रजको दाखके रस दूध घृतके संग सिद्धकरके रक्तष्ठीवी मनुष्य पीव अथवा महुआ मुलहटी दूधमें सिद्धकरी चौंलाईकोभी रक्तष्ठीबी मनुष्य पावै ॥८४॥ और मुखआदिकरके विसृतहुये रक्तमें यथायोग्य रक्तपित्त चिकित्सितमें कहे औषधको करै ।।८५॥ मूढवातस्त्वजामेदःसुराभृष्टं ससैन्धवम् ॥ क्षामाक्षीणक्षतोरस्को मन्दनिद्रोऽग्निदीप्तिमान् ॥८६॥ शृतक्षीररसेनाद्यात्सघृत क्षौद्र शर्करम्॥शर्करां यवगोधूमं जीवकर्षभको मधु॥८॥धृत क्षीरानुपानं वा लिह्यात्क्षीणः क्षतः कृशः॥क्रव्यापिशितनि[हं घृतभृष्टं पिबेच्च सः ॥ ८८ ॥पिप्पलीक्षौद्रसंयुक्तं मांस शोणितवर्धनम् ॥ मूढवातवाला मनुष्य मदिरामें भूने और सेंधानमकसे संयुक्त बकरीके मेदको खावै, और कृश तथा फटीहुई छातीवाला मंद नींदवाला और दीप्तहुई अग्निवाला मनुष्य ॥ ८६ ॥ पकायेहुये दूध के संग घृत शहद खांडसे संयुक्तकिये बकरीके मेदको खावै और खांड जब गेहूं जीवकऋषभक १ जीवक ऋषभककी पहचान यह है कि जीवक झाडूके आकारवाला ऋषभक बैलके सींगके समान होता है दोनोंका कन्द लहसनके कन्द के समान होता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy