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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४८७) दालचीनी इलायची सूठ मिरच पीपल मुनक्का दाख पीपलामूल पोहकरमूल धानकी खील नागरमोथा कचूर रायसण आंवला बहेडा इन्होंकरके ॥ ३१ ॥ और खांड शहद घृत इन्होंकरके बनाया लेह हृद्रोग और खांसीको नाशता है।
मधुरैर्जाङ्गलरसैर्यवश्यामाककोद्रवाः॥३२॥ मुद्दादियूषैः शाकैश्च तिक्तकैर्मात्रया हिताः ॥ घनश्लेष्मणि लेहाश्च तिक्तकामधुसंयुताः॥३३॥शालयः स्युस्तनुकफे षष्टिकाश्च रसादिभिः॥ शर्कराम्भोऽनुपानार्थं द्राक्षेक्षस्वरसाः पयः॥ ३४ ॥ काकोली बृहतीमेदाद्वयैः सवृषनागरैः ॥ पित्तकांसे रसक्षीरपेयायूषान्प्रकल्पयेत् ॥ ३५॥
और जव श्यामाक कोदू ये सब अन्न मधुररस तथा जांगलदेशके मांसोंके संग ॥ ३२ ॥ और मूंगआदिके यूषोंके संग और तिक्तरूप शाकोंके संग मात्राकरके दियेहुये पूर्वोक्त अन्न कररे कफवाली खांसीमें हितहैं अथवा शहदसे संयुक्त कडुवे द्रव्योंके लेहभी हितहैं ॥ ३३ ॥ सूक्ष्मकफवाली खांसीमें शालीचावल और शांठिचावल मांसरस आदिके साथ हितहैं और अनुपानके अर्थ खांडका सरबत दाख और ईखका रस दूध हितहै ॥ ३४ ॥ पित्तकी खांसीमें काकोली बडीकटेहली मेदा महामेदा वांसा सूंठ करके मांसका रस दूध पेया यूष इन्होंको कल्पितकरै ॥ ३५ ॥ ।
द्राक्षां कणां पञ्चमूलं तृणाख्यं च पचेजले ॥ तेन क्षीरं शृतं शीतं पिबेत्समधुशर्करम्॥३६॥ साधितां तेन पेयां वा सुशीतां । मधुनान्विताम् ॥ अथवा दाख पीपल पंचमूल रोहिस तृण इन्होंको जलमें पकावे, तिसके चतुर्थांश रहे जलमें पकाये हुये दूधको शीतलकर तिसमें शहद और खांड मिला पावै ॥ ३६ ॥ अथवा तिसी जलमें साधितकरी और शीतल करी और शहदसे संयुक्त पेयाको पावै ॥
शठीहीवेरबृहतीशर्कराविश्वभेषजम् ॥ ३७॥
पिष्टा रसं पिबेत्पूतं वस्त्रेण घृतमूर्चिछतम् ॥ अथवा कचूर नेत्रवाला बडीकटेहली खांड सूंठ इन्होंको ॥ ३७॥ पानीमें पीस रसको निकास वस्त्रमें छान घृतमें मिला पावै ॥
शर्करां जीवकं मुद्गमाषपण्यौँ दुरालभाम् ॥३८॥ कल्कीकृत्य पचेत्सर्पिः क्षीरेणाष्टगुणेन तत्॥पानभोजनलेहेषु प्रयुक्तं पित्त कासजित् ॥३९॥ लिह्याद्वा चूर्णमेतेषां कषायमथवा पिबेत् ॥
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