SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 544
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४८१) है और तैसेही पांचगुने पानीमें पकाहुआ गायका दूध देना योग्य है अथवा लघुपंचमूलकरके पकायाहुआ मिसरी आर शहदसे संयुक्त गायका दूध हित है ॥३५॥ अथवा जीवक ऋषभक दाख खरैहटी गोखरू सूंठ इन्होंकरके अलग अलग पकायाहुआ घृत और मिसरीसे संयुक्त दूधहितहै ॥३६॥ गोकण्टकाभीरुशृतं पर्णिनीभिस्तथा पयः॥ हन्त्याशु रक्तं सरुजं विशेषान्मूत्रमार्गगम् ॥ ३७॥ गोखरू और शतावरीकरके पकायाहुआ अथवा शालपर्णी पृश्निपी मूंगपर्णी माषपर्णी करके पकायाहुआ दूध पीडासे संयुक्त और विशेषकरके मूत्रमार्गमें गमनकरनेवाले रक्तपित्तको शीघ्र नाशताहै ॥ ३७॥ विण्मार्गगे विशेषेण हितं मोचरसेन तु ॥ वटप्ररोहैःशृङ्गैर्वा शुण्ठयुदीच्योत्पलैरपि॥३८॥ रक्तातिसारदुर्नामचिकित्सांचात्र कल्पयेत् ॥ पीत्वा कषायान्पयसा भुञ्जीत पयसैव च ॥ ३९ ॥ कपाययोगैरेभिर्वा विपक्कं पाययेद्धृतम् ॥ विष्ठाके मार्गमें गमन करनेवाले रक्तपित्तमें मोचरसकरके पकाया अथवा बडके अंकुरोंकरके पकाया अथवा बडकी कलियोंकरके पकाया अथवा सूंठ कमल नेत्रवाला इन्होंकरके पकाया दूध विशेषकरके हितहै ॥ ३८ ॥ रक्तकी अतिसारकी और रक्तकी बवासीरकी चिकित्साकोभी यहाँ रक्तपित्तों कल्पित करै और पहिले कहेहुये काोंका दूधके संग पानकर पीछे दूधकेही संग अन्नका भोजनकरै ॥ ३९ ॥ अथवा इन पूर्वोक्त काथोंकरके पकायेहुये घृतको रक्तपित्तके अर्थ पानकरावै ॥ समूलमस्तकं क्षुण्णं वृषमष्टगुणेऽम्भसि॥४०॥पक्काष्टांशावशेषेणघृतं तेन विपाचयेत् ॥ पुष्पगर्भ च तच्छीतं सक्षौद्रपित्तशोणितम् ॥४१॥ पित्तगुल्मज्वरश्वासकासहृद्रोगकामलाः॥ति- मिर भ्रमवीसर्पस्वरसादांश्च नाशयेत् ॥॥४२॥ और मूल तथा मस्तक सहित अडूसेको लेकर कूट पीछे आठगुने पानीमें ॥ ४० ॥ पकावै जब आठवाँ हिस्सा बाकी रहै तिसकरके घृतको पकावै परंतु पकनेके समय वांसाके फूलोंका कल्क मिलावै पीछे शीतल किया और शहदसे संयुक्त यह घृत रक्तपित्तको ॥ ४१ ॥ और पित्त गुल्म ज्वर श्वास खांसी हृद्रोग कामला तिमिर भ्रम विसर्प स्वरसाद इनरोगोंको नाशताहै ॥ ४२ ॥ पालाशवृन्तस्वरसे तद्गर्भ च घृतं पचेत् ॥ सक्षौद्रं तच्च रक्तघ्नं तथैव त्रायमाणया ॥४३॥ ढाकके वृंतोंके स्वरसमें अर्थात् फलपत्रका बंधनमें ढाकके वृंतोंका कल्क मिला तिसमें घृतको पकावै पीछे शहदसे संयुक्त किया यह घृत अथवा तैसेही अस्फाक करके पकायाहुआ व्रत रक्तपित्तको नाशताहै ॥ ४३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy