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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४७९) शूकशिबीसे उपजा अन्न और शाक रक्तपित्तमें श्रेष्ठ है ॥ १९॥ अन्नस्वरूपविज्ञानीय अध्यायमें जो कहा है हलका और शीतल वह हित है और झूठकरके रहित षडंगनामक पानी अथवा पंचमूल करके पकाहुआ पानी ॥ २०॥ अथवा गरमके पीछे शीतलकिया पानी अथवा शहदकरके संयुक्त किया पानी अथवा दाखआदि पित्तको नाशनेवाले फलोंकरके सिद्ध किया पानी यह सब हितहै ।। शशः सवास्तुकः शस्तो विबन्धे तित्तिरिः पुनः॥२१॥ उदुम्बरस्यनि!हे साधितो मारुतेऽधिके॥ प्लक्षस्य वर्हिणस्तद्वन्न्यग्रोधस्य च कुकुटः॥ २२॥ और रक्तपित्तके विडिबंधमें शशाका मांस और वथवेका शाक देना हित है ॥ २१ ॥ और रक्तपित्तवालेके वायुकी अधिकतामें गृलरके क्वाथमें साधितकिया तीतरका मांस हित है, अथवा पिलखनके क्वाथमें साधितकिया मोरका मांस हित है, अथवा बडके बाथमें साधितकिया मुरगेका मांस हित है ॥ २२॥ __यत्किञ्चिद्रक्तपित्तस्य निदानं तच्च वर्जयेत् ॥ २३ ॥ और जो कुछ रक्तपित्तको करनेवाला पदार्थ है और जिससे रक्तपित्त पैदावा तिसकोभी रोगी त्यागे ॥ २३ ॥ वासारसेन फलिनीमृद्रोधाञ्जनमाक्षिकम् ॥ पित्तासक्छमयेत्पीतं निर्यासो वाऽटरूषकात् ॥२४॥शर्करामसंयुक्तः केबलो वा शृतोऽपि वा ॥ वृषः सद्यो जयत्यत्रं स ह्यस्य परमौषधम् ।। २५॥ अडसेके रसमें मुलहटी कृष्णमार्ग लोध रसोन लहसन शहद इन्होंका योग रक्तपित्तको शांत . करता है अथवा बांसेका रस ॥ २४ ॥ खांड तथा शहदसे संयुक्त कर पियाजावै तो रक्तपित्तके जीतताहै और केवल वांसाका रस अथवा बांसाका क्वाथभी रक्तपित्तको जीतता है इसवास्ते वांसा रक्तपित्तको शीत्र जीतती है और यही वांसा रक्तपित्तको परम औषध है ।। २५ ॥ पटोलमालतीनिम्बचन्दनद्वयपद्मकम् ॥ रौधो वृषस्तन्दुलीयः कृष्णामृन्मदयन्तिका ॥२६॥ शतावरी गोपकन्या काकोल्यौ मधुयष्टिकारक्तपित्तहराःक्वाथास्त्रयः समधुशर्कराः ॥ २७॥ परवल मालती नींब सफेदचंदन लालचंदन कमल यह और दोनोंप्रकारके लोध वांसा चौलाई कालीमट्टी बेलमोगरी ॥ २६ ॥ यह और शतावरी सफेदसारिवा काकोली क्षीरकाकोली मुलहठी ये शहद और खांडसे संयुक्त किये तीनों क्वाथ रक्तपित्तको हरतेहैं ॥ २७ ॥ पलाशवल्कक्काथो वा सुशीतः शर्करान्वितः॥ पिबेद्वा मधुसर्पिभांगवाश्वशकृतो रसम्॥२८॥सक्षौद्रं ग्रथिते रक्ते लिह्यात्यारा For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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