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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४६७) क्षीरोचितस्य प्रक्षीणश्लेष्मणो दाहतृड्वतः॥ १०५॥ क्षीरं पित्तानिलार्तस्य पथ्यमप्यतिसारिणः ॥ और दूध देनेको उचित, क्षीणकफवाला, और दाहतृषावाला ॥ १०५ ॥ पित्तवातसे पीडित पुरुषको दूध देना पथ्य है और ऐसेही अतिसारवालेकोभी पथ्य है ।। तद्वपुर्लंघनोत्तप्तं प्लुष्टं वनमिवाग्निना॥१०॥ दिव्याम्बु जीवयेत्तस्य ज्वरं चाशु नियच्छति ॥ संस्कृतं शीतमुष्णं वा तस्माद्धारोष्णमेव वा ॥ १०७॥ विभज्य काले युंजीत वरिणं हन्त्यतोऽन्यथा॥ वह दूध अग्निकरके तपायमान बनको तरह लंघनकरक तयायमान शरीरको ॥ १०६ ।। वर्षाके जलकी तरह जियादेताहै और ज्वरकोभी शीघ्रही नाशदेताहै और औषधोंमें सिद्ध किया हुवा दूध शीतल, अथवा गरम अथवा धारोंहीसे निकसा गरम ॥ १०७ ॥ दूधका यथाक्रमसे विभागकर समयप देना चाहिये अन्यथा दियाहुवा दूध ज्वरीपुरुषको मारदेताहै ।। पयःसशुण्ठीखर्जूरमृद्वीकाशर्कराघृतम् ॥१०८॥ शृतशीतं मधु युतं तृड्दाहज्वरनाशनम् ॥ तद्वद्राक्षावलायष्टीसारिवाकण चन्दनैः।चतुर्गुणेनाम्भसा वा पिप्पल्या वा शृतं पिबेत्॥१०९॥ और झूठ, खजूर, मुनक्का दाख, खांड, व्रतसंयुक्तदूध ॥ १०८ ॥ पकाके शीतल कियाहुवा हो तिसमें शहद मिलादेनेसे दाह, तृषा, ज्वरको नाशताहै, और तैसे ही दाख, ग्खरैटी, सारिवा, मुलहटी, चंदनका बुरादा, इन्होंको चौगुनेज ठमें अथवा पीपल के सिद्धजलमें पका तिसमें सिद्धहुए दूधको पीये ॥ १०९ ॥ कासाच्छासाच्छिरः शूलात्पावशूलाच्चिरज्वरात् ॥ मुच्यते ज्वरितः पीत्वा पञ्चमूलीशृतं पयः॥ ११०॥ शृतमेरण्डमूलेन बालबिल्वेन वा ज्वरात् ॥धारोष्णं वा पयः पीत्वा विवद्धा निलवर्चसः॥१११॥सरक्तपिच्छातिसृतेःसतुट्रच्छूलप्रवाहिकान॥ यह दूध खांसी, श्वास, शिरका शूल, पशलीशूल, पुराने ज्वरको दूरकरताहै और पंचमूलमें सिद्धकियाहुआभी दूध इन्होंको नाशताहै ॥ ११० ॥ अथवा अरंडकी जड कचीबेलगिरीमें सिद्धकियेहुए दूधकरके ज्वरसे छूटजाताहै और धारोंसे निकसा गरम द्धके पीनेसे बंबेहुये अधोवात विष्ठासे छूटजाताहै ॥ १११ ॥ और रुधिर तथा डागोंसे युक्त अतिसारसे छूट जाताहै और तृपा शूलसे युक्त प्रवाहिकासे छूटजाताहै ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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