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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४६२) अष्टाङ्गहृदयेऔर चमेलीके पत्ते आमला नागरमोथा धमासाकाभी पहिलेकी तरह हिमक्वाथ बनाके पीना सब ज्वरोंका नाश करताहै ।। ६८ ॥ और बंधविष्टावाला पुरुष कटकी दाख लज्जावन्ती त्रिफला गुडका क्वाथ पीवै ॥ . जीौषधोऽन्नं पेयाद्यमाचरेच्छेष्मवान्न तु ॥६९॥ पेया कर्फ वर्द्धयति पंकपांसुषु वृष्टिवत्॥ श्लेष्माभिष्पन्नदेहानामतः प्रागपि योजयेत् ॥ ७० ॥ यूषान्कुलत्थचणकदाडिमादिकृताल्लँघून ॥ रूक्षांस्तिक्तरसोपेतान्हृद्यात्रुचिकरान्पटुन् ॥७१ ॥ और जीर्ण औषधवाला अन्न और पेयादिकको भोजन करें, परन्तु कफवाला पुरुष नहीं करे ॥ ६९ ॥ और पेया कफको बढातीहै, कीच धूलमें हुई वर्षाकी तरह इसवास्ते कफकरके क्लिनदेहवाले पुरुषोंको पहिलेभी ॥ ७० ॥ कुलथी चना अनारदाना इन्होंमें किये हुये हलके यूष देने चाहिये और रूखे तिक्त अर्थात् कडुवे रसोंसे युक्त और मनोहर रुचिके करनेवाले चरचरे यूष देने चाहिये ।। ७१ ॥ रक्ताद्याःशालयो जीर्णाः षष्ठिकाश्च ज्वरे हिताः ॥ श्लेष्मोत्तरे वीततुषास्तथा वाद्यकृता यवाः ॥ ७२ ॥ ओदनस्तैः शृतोद्विस्त्रिः प्रयोक्तव्यो यथायथम्॥ दोषदृष्यादिवलतो ज्वरघ्नक्काथसाधितः ॥ ७३ ॥ और लाल आदिके पुराने और सांटिचावल ज्वरमें हित हैं और कााधिकअरमें फोलर उतारे जव हित हैं ॥ ७२ ॥ और तिन लाल चावल और सांठिचावलोंकरके सिद्ध किया हुआ भोजन दोबार अथवा तीनबार यथार्थ योग्यके अनुसार देना चाहिये और दोषोंके दूषण आदिकोंके बलके अनुसार ज्वरनाशक काथ सिद्ध किया हुआ देना चाहिये ।। ७३ ॥ ... मुद्गाद्यैर्लघुभियूषाः कुलत्थैश्च ज्वरापहाः ॥ और मूंगआदिक लघुअन्नोंकरके अथवा कुलथीकरके सिद्ध कियेहुये ज्वरनाशक यूष देनाचाहिये।। कारवेल्लकककर्कोटवालमूलकपर्पटैः॥७४॥ वार्ताकनिम्बकुसु. . मपटोलफलपल्लवैः ॥ अत्यन्तलघुभिर्मासैर्जाङ्गलैश्च हिता रसाः ॥७५॥ व्याघ्रीपरुषतर्कारीद्राक्षामलकदाडिमैः ॥ संस्कृतापिप्पलीशुण्ठीधान्यजीरकसैन्धवैः ॥ ७६ ॥ सितामधुभ्यां प्रायेण संयुता वा कृताकृताः॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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