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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४३२) अष्टाङ्गहृदयेवातश्लेष्मोद्भवा श्लेष्मपित्ताद्दद्रुशतारुषी ॥ पुण्डरीकं सविस्फोटं पामा चर्मदलं तथा ॥९॥ सर्वैःस्यात्काकणं पूर्वं त्रिकं दद्रुसकाकणम् ॥ पुण्डरीकःजिह्वे च महाकुष्ठानि सप्त तु॥१०॥ वात, पित्त, कफ, वातपित्त, वातकफ, पित्तकफ, सन्निपात, इन्हों करके कुष्ट ७ प्रकारका है॥ ६ ॥ और त्रिदोषसे उपजनेवाले सब प्रकारके कुष्टोंमें सन्निपातमें अधिकपना है, यह व्यपदेश अर्थात् संज्ञा है और वातकी अधिकतावाले सन्निपात करके कापालकुष्ठ होताहै और पित्तकी अधिकतावाले सन्निपातसे औदुंबरकुष्ठ होता है और कफकी अधिकतावाले सन्निपातसे ॥ ७ ॥ मंडलाख्यकुष्ठ और विचर्चिका कुष्ठ होताहै और बातपित्तकी अधिकतावाले सन्निपातसे ऋक्षजिह्व कुष्ठ होताहै और चर्मदल, एक कुष्ठ,किटभ, सिम, अलस, विपादिका, ये कुष्ट ॥ ८ ॥ वात कफकी अधिकतावाले मन्निपातसे उपजतेहैं और कफपित्तकी अधिकतावाले सन्निपातसे दद्रु,शतारु पुंडरीक, विस्फोट, पामा, चर्म, ये सब उपजतहैं ॥ ९॥ और बढेहुये सबदोषोंकरके काकणनाम कुष्ठ उपजताहै और कपाल, उदुंबर, मंडल, दद्रु, काकण, पुंडरीक, ऋक्षजिह्व, ये सात महाकुष्ट हैं ॥ १० ॥ . अतिश्लक्ष्णखरस्पर्शस्वेदस्वेदविवर्णताः॥ दाहः कण्डूस्त्वचि स्वापस्तोदः कोठोन्नतिः श्रमः ॥ ११॥ व्रणानामधिकं शूलं शीघ्रोत्पत्तिश्चिरस्थितिः रूढानामपि रूक्षत्वं निमित्तेऽल्पेऽपि कोपनम् ॥१२॥ रोमहर्षोऽसृजः काष्ण्यं कुष्ठलक्षणमग्रजम् ॥ अतिकोमल अथवा तेज स्पर्शहोवे, अत्यंत पसीना आवे अथवा पसीना आवे नहीं और वर्ण बदल जावे और दाह, खाज, त्वचामें स्वाप, चभका, कोठकी उन्नति परिश्रम ॥ ११ ॥ वणोंमें अधिक शूल और व्रणोंकी शीघ्र उत्पत्ति और चिरकालतक स्थिति और अंकुरको प्राप्तहुये व्रणोंमें रूखापन और अल्पकारण भी कोप ॥ १२॥ और रोमांच, लोहूका कालापन ये सब कुष्ठके पूर्वरूपके लक्षण हैं। कृष्णारुणकपालाभं रूक्षं सुतं खरं तनु ॥१३॥ विस्तृतासमप य॑न्तं दूषितैलोमभिश्चितम।तोदाढ्यमल्पकण्डूकं कापालं शीघसर्पिच॥१४॥ पक्कोदुम्बरताम्रत्वग्रोमगौरशिराचितम्।वहलं बहुलक्लेदं रक्तं दाहरुजाधिकम्॥१५॥आशूत्थानावदरणक्रिमि विद्यादुदुम्बरम्॥स्थिरं स्त्यानं गुरु स्निग्धं श्वेतरक्तमनाशुगम् ॥१६॥ अन्योऽन्यसक्तमुत्सन्नं बहुकण्डूस्रतिक्रिमि ॥ श्लक्ष्ण For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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