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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४२५) निचयादतः॥ सर्व हेतुविशेषैस्तु रूपभेदान्नवात्मकम्॥२२॥ दोषैः पृथग्द्वयैः सर्वैरभिघाताद्विषादपि ॥ द्विधा वा निजमागन्तुं सर्वाङ्गकाङ्गजं च तम् ॥२३॥ पृथुन्नतग्रथितताविशेषैश्च त्रिधा विदुः॥सामान्यहेतुः शोफानां दोषजानां विशेषतः ॥२४॥ व्याधिकोपवासादिक्षीणस्य भजतो द्रुतम् ॥ अतिमात्रमथान्यस्य गर्वम्लस्निग्धशीतलम् ॥२५॥ लवणक्षारतीक्ष्णोष्णं शाकाम्बुस्वप्नजागरम्॥ मृदग्राम्यमांसवल्लूरमजीर्ण श्रममैथुनम् ॥ २६ ॥ पदातेार्गगमनं यानेन क्षोभिणापि वा ॥ श्वासकासातिसारार्शोजठरप्रदरज्वराः॥ २७॥ विसूच्यलसकच्छर्दिगर्भवीसर्पपाण्डुताः ॥ अन्ये च मिथ्योपक्रान्तास्तैर्दोषा वक्षसि स्थिताः॥२८॥ ऊर्द्ध शोफमधोवस्तौ 'मध्ये कुर्वन्ति मध्यगा।।सर्वाङ्गगाःसर्वगतं प्रत्यङ्गेषु तदाश्रयाः ॥ २९ ॥ तत्पूर्वरूपं दवथुः शिरायामोऽङ्गगौरवम्॥ और जो पांडुरोगमें हरापन, धूम्रपना, पीलापन, ॥ १८॥ और वातपित्तसे भ्रम, तृषा, स्त्रियोंमें आनंदका नहीं होना, तंद्रा बल और जठराग्निका नाश होता है, तिसको मुनिजन लोढर अथवा हलीमक ॥ १९ ॥ अथवा अलस कहते हैं और तिन्होंके शोजाकी प्रधानतावाले उपद्रव पहिले कहदिये हैं इसवास्ते पांडुरोगके अनंतर शोजारोगके निदानको कहते हैं ॥२०॥ और दुष्टहुआ वायु दुष्टहये पित्तरक्तकफको बाहिरकी नाडियोंमें प्राप्तकर और तिन्होंकरके अवरुद्ध गतिघाला होके पीछे त्वचा और मांसमें संश्रयवाले ॥ २१ ॥ चारोंतर्फसे हत अर्थात् निश्चल उत्सेद अर्थात् ऊंचेपनेको करता है और जिसकरके वात पित्त कफके मिलापसे शोजा उपजता है तिसी वास्ते सब प्रकारके शोजाको सन्निपातसे उपजा जानना और हेतु विशेषों करके जो रूपभेद है तिससे शोजा नव प्रकारका है ॥ २२ ॥ वात पित्त कफ इन्होंकरके तीन और वातपित्त वातकफ पित्तकफ इन्होंकरके तीन सन्निपातसे एक अभिघातसे एक विषसे एक ऐसे नव प्रकारके शोजे हैं, निज और आगंतुभेद करके शोजा दो प्रकारका होता है और सब अंगोंमें उपजनेवाला और एक अंगमें . उपजनेवाला इन भेदोंसेभी दोप्रकारका है ॥ २३ ॥ पृथु अर्थात् मोटा ऊंचा और गाठोंवाला विशेषों करके शोजा तीन प्रकार का कहा है, विशेषतासे दोषसे उपजनेवाले शोजोंका सामान्य कारण यह है ॥ २४ ॥ व्याधि वमन आदि कर्म व्रत आदि करके क्षीणहुयेके और शीघ्रतासे भारी खट्टी चिकनी शीतल वस्तुको सेवनेवालेके और अत्यंत मात्राको सेकनेवाले स्वस्थ मनुष्यक॥२५॥ और लवण, खार, तीक्ष्ण, गरम, शाक, पानी, दिनका शयन, रात्रिका जागना, ग्राम्यजीवका. For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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