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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४०७ ) । महाशया ॥ रुजानिस्तोदबहुला सूक्ष्मच्छिद्रा च जालिनी ॥२९॥अवगाढरुजा क्लेदा पृष्ठे वा जठरेपि वा ॥महती पिटि का नीला विनता विनता स्मृता ॥३०॥ चारोंओर ऊंची मध्यमें नीची धूम्रवर्णवाली, क्लेद और शूलसे संयुक्त और सकोराके समान आकारवाली पिटिका शराविका होती है ।। २७ ॥ अत्यंतरूप पीडा और चभकासे संयुक्त और शरीरके अवयवविशेषमें आश्रयवाली और कोमल और कछुआके पृष्ठभागके समान कांतिवाली पिटिका अर्थात् फुनसी कच्छपी मानी है ॥ २८ ॥ टांढ और नाडियोंके जालसे संयुक्त और चिकनेखाववाली और बडे स्थानवाली शूल और चभकाके बहुलपनेसे संयुक्त और सूक्ष्मछिद्रोंवाली फुनसी जालिनी होती है ॥ २९ ॥ और अत्यंत पीडावाली पिटिका महती होती है, पृष्ठभागमें और पेटमें उपजी हुई और नीलेवर्णवाली और ऊंचेपनसे रहित पिटिका विनता होती है ॥३०॥ दहति त्वचमुत्थाने भृशं कष्टा विसर्पिणी ॥रक्तमुष्णातितृट्र स्फोटदाहमाहज्वराऽलजी ॥ ३१॥ मानसंस्थानयोस्तुल्यामसूरेण मसूरिका ॥ सर्षपा मानसंस्थाना क्षिप्रपाका महारुजा ॥ ३२ ॥ सर्षपा सर्षपातुल्यपिटिका परिवारिता ॥ पुत्रिणी महती भूरिसुसूक्ष्मपिटिकावृता ॥३३॥ विदारीकन्दवद्वत्ता कठिना च विदारिका ॥ विद्रधिर्वक्ष्यतेऽन्यत्र तत्रायं पिटिका त्रयम् ॥३४॥ पुत्रिणी च विदारी च दुःसहा बहुमेदसः॥ सह्याः पित्तोल्बणास्त्वन्याः सम्भवन्त्यल्पमेदसः ॥३५॥ तासु मेहवशाच्च स्यादोषोद्रेको यथायथम् ॥ समेहेण विना प्येता जायन्ते दुष्टमेदसः॥ ३६॥ तावच्च नोपलक्ष्यन्तेयावद्वस्तुपरिग्रहः ॥ हारिद्रवर्ण रक्तं वा मेहप्राग्रूपवर्जितम् ॥यो मूत्रयेन्न तं महें रक्तपित्तं तु तद्विदुः ॥३७॥ उठनेमें त्वचाको दग्धकरनेवाली और अत्यंत दुःसहरूप और फैलनेवाली और रक्त तथा कृष्ण वर्णवाली और अत्यंत तृषा, स्फोट,दाह, मोह, ज्वरको करनेवाली पिटिका अलजी होती है॥३१॥ प्रमाण और आकृतिकरके ममूरके समान पिटिका मसूरिका होती है और परिमाणमें और आकृतिमें शरसोंके समान और तत्काल पकनेवाली और अत्यंत शूलवाली ॥ ३२ ॥ और शरसोंके समान फुनसियोंसे परिवारित पिटिका सर्षपा होती है, और बडी और बहुतसी सूक्ष्मरूप फुनसियोंसे परिवृत पुत्रिणी पिटिका होती है ॥ ३३॥ विदारकिंदके समान गोल और कठिन विदारका पिटिका होती है, और विद्रधि पिटिकाको इस अध्यायसे अन्य अध्यायमें वर्णन करेंगे और इन For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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