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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३९४) अष्टाङ्गहृदयेऔर रक्तवर्ण होता है और कफकी अधिकतासे चिकनापन और गांठके सदृशपना और वर्णके सदृशपना होता है ॥ १८ ॥ अर्शसां प्रशमे यत्नमाशु कुर्वीत बुद्धिमान् ॥ तान्याशु हि गुदं बद्धा, कुर्युबद्धगुदोदरम् ॥ ५९॥ बुद्धिमान् वैद्य अर्शरोगकी शांतिके अर्थ शीघ्र यत्नको करै क्योंकि वे मस्से गुदाको बंधकर शीघ्रही बद्धगुदोदररोगको करते हैं ॥.५९॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां निदानस्थाने सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥ अष्टमोऽध्यायः। अथातोतीसारग्रहणीरोगयोनिदानं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर अतिसार और ग्रहणीरोगके निदानको वर्णन करेंगे। दोषैर्व्यस्तैसमस्तैश्च भयाच्छोकाच्च षड्विधः॥ अतीसारः ससुतरांजायतेऽत्यम्बुपानतः ॥१॥कृशशुष्कामिषासात्म्यतिलपिष्टविरूढकैः॥ मद्यरूक्षातिमात्रान्नैरशोभिः स्नेहविभ्रमात्॥२॥ कृमिभ्यो वेगरोधाच्च तद्विधैः कुपितोऽनिलः विस्रंसयत्यधोऽ ब्धातुं हत्वा तेनैव चानलम् ॥ ३॥ व्यापद्यानु शकृत्काष्ठं पुरीषं द्रवतांनयन्॥प्रकल्पतेऽतिसाराय लक्षणं तस्य भाविनः ॥ ४ ॥ तोदो हृद्गुदकोष्ठेषु गात्रसादो मलग्रहः ॥ आध्मान मविपाकश्च तत्र वातेन विजलम् ॥ ५॥ अल्पाल्पं शब्दशूलाढ्यं विबद्धमुपवेश्यते ॥रूक्षं सफेनमच्छञ्च ग्रथितं वा मुहुर्मुहुः॥६॥ तथा दग्धगुडाभासं सपिच्छापरिकर्तिकम् ॥ शुष्कास्यो भ्रष्टपायुश्च हृष्टरोमा विनिष्टनन् ॥ ७॥ वातसे, पित्तसे, कफसे सन्निपातसे, भयसे, शोकसे अतिसार छः प्रकारका है यह अतिसार अत्यंत पानीके पीनेसे उपजता है ॥१॥ कृश और सूखा मांस और प्रकृतिके अयोग्य भोजन तिल, पिट्टी और बुरीतरह निरूहबस्तिकर्म; मदिरा, रूखा और अत्यंत मात्रावाला अन्न बवासीररोग, स्नेहकी व्यापत्ति ॥ २॥ इन्होंसे और पेटमें कीडेके होनेसे और अधोवातआदिवेगोंके रोकनेसे For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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