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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । ( ३५३ ) करके और मद्य बुरा पानी सूखा शाक और कच्ची मूली इन्होंकरके ॥ २० ॥ और तिलआदिका कल्क माटी, जव, मदिरा, दुर्गंधित, सूखा, माडा, जीवकी देहसे उपजा मांस इन्होंकरके और त्रिदोषको करनेवाले दही, फाणित, सरसों शाक, इन्होंकरके तथा अन्नको हलाना व हलानेसे ॥ २१ ॥ दुष्ट हुये धातुसे, पूर्वकी पवनसे और ग्रहके दोषसे विषसे तथा उपविषसे और दुष्ट अन्नसे पर्वतके मिलापसे सूर्य आदिग्रहों करके जन्मके नक्षत्रको पीडित करनेसे ॥ २२ ॥ और अनेक प्रकारके मिथ्यायोगसे और पापोंके सेवनेसे और स्त्रियोंके प्रसव अर्थात् बालक होनेके वख्त विषमता होनेसे और मिथ्या अर्थात् हीन और अयोग्यचिकित्सा होनेसे सन्निपात उपजताहै ॥२३॥ प्रतिरोगमिति क्रुद्धा रोगाधिष्ठानगामिनीः ॥ रसायनीः प्रपद्याशु दोषा देहे विकुर्वते ॥ २४ ॥ रोगरोग के प्रति कुपितहुये वात आदिदोष रोगोंके रक्तआदि स्थानोंमें गमन करनेवाली और रसको बहनेवाली नाडियों में प्राप्तहोके देहमें विकारको प्राप्त करते हैं ॥ २४ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायांनिदानस्थाने प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥ द्वितीयोऽध्यायः । अथातो ज्वरनिदानं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर ज्वरनिदाननामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे || ज्वरो रोगपतिः पाप्मा मृत्युरोजोऽशनोऽन्तकः ॥ क्रोधो दक्षाध्वरध्वंसी रुद्रोर्ध्वनयनोद्भवः ॥१॥ जन्मान्तयोर्मोहमयः सन्ता पात्माऽपचारजः ॥ विविधैर्नामभिः क्रूरो नानायोनिषुवर्त्तते ॥२॥ रोगोंका पति और पापस्वभाववाला और सब प्राणियों को मारनेवाला और पराक्रमको खानेवाला और मरणका कारण और दक्षसे अपमानित किये महादेवका क्रोधरूप और दक्षप्रजापति के यज्ञको नाशनेवाला और महादेव के ऊपर के नेत्रसे उपजा || १ || और जन्ममें तथा अंतमें मोहमय और संतापात्मा और अपचाररूप आहार और विहारसे उपजा और अनेक प्रकारके नामोंकरके क्रूररूप हुआ अनेक प्रकारकी योनि अर्थात् हाथी, अश्व, गाय, पक्षी आदियों में वर्तनेवाला ज्वर है || २॥ स जायतेऽष्टधा दोषैः पृथग्मित्रैः समागतैः ॥ आगन्तुश्च म लास्तत्र स्वैःस्वैर्दुष्टाः प्रदूषणैः ॥ ३ ॥ आमाशयं प्रविश्याममनुगम्य पिधाय च ॥ स्रोतांसि पक्तिस्थानाच निरस्य ज्व २३ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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