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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३४८) अष्टाङ्गहृदये - अलाशयान् ॥ ६६ ॥ कन्यां कुमारकान्गौराञ्शुक्लवस्त्रान्सु तेजसः॥ नराशनं दीप्ततनुं समन्ताद्रुधिराक्षितः ॥ ६७ ॥ यः पश्येल्लभते यो वा छत्रादर्शविषामिषम् ॥शुक्लाः सुमनसो वस्त्रममेध्यालेपनं फलम् ॥६८॥ शैलप्रासादसफलवृक्षसिंहनरद्विपान् ॥ आरोहेद्गोऽश्वयानं च तरेन्नदह्रदोदधीन् ॥६९॥पू ऊत्तरेण गमनमगम्यागमनं मृतम् ॥ सम्बाधान्निःमृतिर्देवैः पितृभिश्चाभिनन्दनम् ॥७०॥रोदनं पतितोत्थानं द्विषतां चावमर्दनम् ॥ यस्य स्यादायुरारोग्य वित्तं बहु व सोऽश्नुते॥७१॥ . जो मनुष्य बुरे स्वप्नको देखकर तिसीकालमें पीछे सौम्य स्वप्नको देखै तव शुभही फल होता है ।। ६५ ॥ देवता, ब्राह्मण, गाय, बैल, जीवतेहुये मित्र, राजा, साधु, यशवाले मनुष्योंको और प्रकाशित हुई अग्निको और स्वच्छरूप जलके स्नानोको । ६६ ॥ और कन्या और गौर वर्णवाले और सफेद वस्त्रोंवाले और सुंदर तेजवाले बालकोंको और मनुष्यको खाताहुआ और प्रकाशित शरीरवाले मनुष्यको और चारोंतर्फसे रक्तकरके भीजाहुआ ॥६७॥ मनुष्य स्वप्नमें इन सबोंको देख और छत्र, ससा, मीठा तेलिया आदि विष,मांस इन्होंको प्राप्त होवे और सफेद फूल सफेद वस्त्र और पवित्ररूप, आलेप, फल ॥ ६८ ॥ पर्वत, हबेली, फलवाला वृक्ष, सिंह पुरुप, गैंडा, हाथी, बैल, 'घोटा, रथ आदि असवारीपै चढे और नद, तलाब, समुद्र इन्होंको तरै ॥ ६९ ॥ पूर्वको तथा उत्तरको गमन करे और नहीं गमन करनेके योग्य स्त्रीसे गमन करै, और मरै और पीडासे निकसै देवता तथा पितरोंकरके आनंदित होवै ॥ ७० ॥ और पडके उठ खडाहो और वैरियोंको मर्दन करै जिसरोगीको ये स्वप्न आते हैं वह आयु, आरोग्य, अत्यंतधन इन्होंको सेवताई अर्थात् ये स्वप्न अत्यंत श्रेष्टहैं ॥ ७१ ॥ मङ्गलाचारसम्पन्नः परिवारस्तथातुरः॥ श्रद्दधानोऽनुकूलश्च प्रभूतद्रव्यसंग्रहः॥७२॥ सत्त्वलक्षणसंयोगो भक्तिवैद्यद्विजातिषु॥ चिकित्सायामनिर्वेदस्तदारोग्यस्य लक्षणम् ॥ ७३ ॥ मंगलरूप आचारोंसे संपन्न और श्रद्धासे संपन्न अर्थात इस औषध करके वह रोग नष्ट हो जावेगा ऐसे माननेवाला और वैद्यके अनुकूल अर्थात् कहने मुजब करनेवाला और अन्यंत औषवोंका संग्रह करनेवाला ।। ॥ ७२ और सत्त्वगुणके लक्षण करके संयुक्त और वैद्य तथा ब्राह्मणोंमें भक्तिको करनेवाला और चिकित्साकर्ममें उत्साहको करनेवाला रोगी तथा रोगीका कुटुंब होवे तब आरोग्यका लक्षण जानों अर्थात् तब रोगकी निवृत्ति होती है ॥ ३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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