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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३४२) अष्टाङ्गह्रदयेप्रतिदिशं वाचं क्रूराणा मृगपक्षिणाम् ॥ १९ ॥ कृष्णधान्यगुडोदश्विल्लवणासवचर्मणाम् ॥सर्षपाणांवसातैलतृणपङ्केन्धनस्य च ॥२०॥ क्लीबक्रूरश्वपाकानां जालवागुरयोरपि ॥ छर्दितस्य पुरीषस्य पूतिदुर्दर्शनस्य च ॥ २१॥ निःसारस्य व्यवायस्य कार्पासादेररेरपि ॥ शयनासनयानानामुत्तानानां तु द. र्शनम्॥२२॥ न्युब्जानामितरेषां च पात्रादीनामशोभनम् ॥ __ और हाहाकारकर रोदन, अत्यन्त ऊंचेसे पुकारना, गिरना, वैद्यका अथवा अन्यका पडना, छींक, वस्त्र, छत्र, जूतीजोडा, इन्होंका नाश और आपतका दर्शन ॥ १७ ॥ चैत्य अर्थात देवता धिष्ठितवृक्ष, ध्वजा, वर्तनका डूबना अथवा पडना और हत और अमंगलरूप वचन और भस्म तथा धूली करके वैद्यका दूषित होजाना ॥ १८ ॥ और बिलाव, गोधा, किरलिया, वानर, इन्हों करके मार्गका छेद और क्रूररूप मग अर्थात् गैंडाशृगालादि और पक्षी अर्थात् सिकराआदियोंकी प्रकाशित हुई वाणी, दप्ति अर्थात् जिसदिशामें सूर्य होवे तिसदिशामें बोलनां ॥ १९ ॥ कृष्ण अन्न, गुड, तक्र, नमक, आसव, गरम, सरसों, वसा, तेल, तृण, कीचड, ईंधन ॥ २०॥ हीजडा, क्रूर, चांडाल, जाल, वागुरा अर्थात् मृगबन्धनी, छर्दित किया मैल, विष्टा, दुर्गध, कराल आकृति ।। २१ ॥ सारसे रहित वस्तु, मैथुन, कपासआदि, शत्रुका और ऊपरको मुखवाले शय्या आसनअसवारीका दर्शन ॥ २२ ॥ और नीचेके मुखवाले धडा सिकोराआदिपात्रों का दर्शन ये सब रोगीके घरमें प्रवेश करनेके वख्त अथवा मार्गमें गमन करनेके वख्त वैद्यको अशुभ कहे है। युसंज्ञा पक्षिणो वामाः स्त्रीसंज्ञा दक्षिणाः शुभाः ॥ २३ ॥ प्रदक्षिणं खगमृगा यान्तो नैवं श्वजम्बुकाः ॥ अयुग्माश्च मृगाः शस्ताः शस्ताः नित्यं च दर्शने ॥ २४ ॥ चाषभासभरद्वाजनकुलच्छागबर्हिणः ॥ अशुभं सर्वथोलूकबिडालसरटेक्षणम् ॥ २५॥ प्रशस्ताः कीर्तने कोलगोधाहिशशजाहकाः॥न दर्शने न विरुते वानरावतोऽन्यथा ॥ २६ ॥ पुरुषनामवाले पक्षी वैद्यके वायें होवें तो शुभ कहे हैं, स्त्रीसंज्ञावाले पक्षी वैद्यके दाहिने शुभ कहेहैं ।। २३ ॥ पक्षी और मृग वायसे दाहिनेको गमन करें तो वैद्यको शुभ हैं कुत्ते और गीदड दाहिनेसे बॉयको गमन करै तो वैद्यको शुभ हैं अयुग्म अर्थात् एक संज्ञाके विषमसंज्ञाकी गिनतीवाले मृग श्रेष्ठ है और नित्यप्रति वैद्यको देखनेमें ॥ २४ ॥ पपैय्या, भासपक्षी, भरद्वाजपक्षी काक, नोल, बकरा,मोर ये सब वैदाको बायेभी और दाहिनेभी श्रेष्ठ हैं और उल्लू बिलावकिरलिया,किरकिलास इन्होंका For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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