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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (२९९) तासां शतानां सतानांपादोऽस्रं वहते पृथक्॥ वातपित्तकफैर्जुष्टं शुद्धं चैव स्थिता मलाः ॥३५॥ तिन ७०० सो नाडियोंमेंसे १७५ नाडियां वात, पित्त, कफ इन्होंसे मिलेहुये दुष्ट और शुद्ध रक्तको अलग २वहतीं हैं अर्थात् वातकरके दुष्ट हुये रक्तको १७५ नाडियां वहती हैं __ और पित्तकरके दुष्ट हुये रक्तको १७५ नाडियां बहती हैं और कफकरके दुष्ट हुये रक्तको १७५ नाडियां बहती हैं और शुद्ध रक्तको १७५ नाडियां वहती हैं स्थित हुये वात पित्त कफ३५ शरीरमनुगृह्णन्ति पीडयन्त्यन्यथा पुनः ॥ तत्र श्यावारुणाः सूक्ष्माः पूर्णरिक्ताः क्षणाच्छिराः॥३६॥ शरीरको अनुगृहीत करते हैं, और विपरीतपनेसे स्थित हुये वातादि दोष शरीरको पीडित , करते हैं, तिन नाडियोंमें से जो धूम्र तथा रक्तवर्णवाली और सूक्ष्मरूप और क्षणभरमें पूरित तथा रिक्त होनेवाली ॥ ३६॥ प्रस्यन्दिन्यश्च वातास्त्रं वहन्ते पित्तशोणितम् ॥ स्पर्शोष्णा शीघ्रवाहिन्यो नीलपीताः कर्फ पुनः॥३७॥ और झिरनेवाली नाडियां वातरक्तको वहती हैं और स्पर्शकरके गर्म शीघ्र बहनेवाली नाडियाँ रक्तपित्तको वहती हैं, और नीली तथा पीली और भारी नाडियां कफरक्तको वहती हैं ॥३७॥ . गौर्यः स्निग्धाः स्थिराः शीताः संसृष्टं लिङ्गसङ्करे ॥ गूढाः समस्थिताः स्निग्धा रोहिण्यः शुद्धशोणितम् ॥ ३८॥ और स्निग्ध स्थिर तथा शीतल नाडियां भी कफरक्तको वहती हैं, और लक्षणोंके मिलापमें संस्पृष्ट अर्थात् कफवातसे जुष्ट तथा वातपित्तसे जुष्ट तथा कफपित्तसे जुष्ट रक्तको बहती हैं, और गूढ हुई और समान होके स्थित हुई और स्निग्ध और प्रसरणशील नाडियां शुद्ध रक्तको वहती है ॥ ३८ ॥ धमन्यो नाभिसम्बद्धा विंशतिश्चतुरुत्तराः॥ . ताभिः परिवृतो नाभिश्चक्रनाभिरिवारकैः॥ ३९॥ __ चौवीस धमनी नाडियां नाभिके बंधीहुई हैं अर्थात् तिन नाडियोंसे नाभि परिवृत है जैसे रथके पहियोंकी नाभी आरोंसे बंधीहै उन दो दो नाडियोंमें दो दो वात पित्त कफ रसको वहन करती हैं दो दो शब्दरूपरसगंधोंको ग्रहण करती हैं आठ शब्द रूपरसगंधको ग्रहण करती हैं दो दोसे बोलना शब्द करना सोना जागना होता है दो आंसू बहाती हैं दोस्तनोंके आश्रित दो नाडी है व स्त्रीके दूध और मनुष्यके वीर्यको वहाती हैं नीचे चलनेवाली पक्काशयमें दश नाडी है वो तीन ३ प्रकारसे तीस कहलाती हैं उनमें पूर्ववत् दशमें दो दो वात पित्त कफ रक्त रसको बहन करती हैं दो अन्नको दो शुक्रको वहन करती हैं दो त्याग करती हैं वहीं दो स्त्रियोंके आर्तवको वहन For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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