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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २८० ) . अष्टाङ्गहृदये आविश्य जठरं गर्भो बस्तेरुपरि तिष्ठति ॥ आव्यो हि त्वरयन्त्येनां खट्टामारोपयेत्ततः ॥ ८२ ॥ यदि पेटमें प्राप्त हुआ गर्भ बस्तिस्थानके ऊपर स्थित है तब प्रसवकालमें होनेवाले शूल तिस गर्भिणीके शरीर में दौडते हैं इसवास्ते तिस गर्भिणीको खटापै आरोपित करना योग्य है ॥ ८२॥ अथ सम्पीडिते गर्भे योनिमस्याः प्रसाधयेत् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृदुपूर्वं प्रवाहेत बाढमाप्रसवाच्च सा ॥ ८३ ॥ पीछे वायुकरके पीडितरूप गर्भ होवे तब तिस गर्भिणीको योनिको अभ्यंगआदि करके प्रसादित करै, फिर वह गर्भिणी पहले मृदुरूप और पीछे गाढरूप प्रवाहणकरे अर्थात् बालक निकालनेको आंतर गावे जिससे बालक पैदा हो ॥ ८३ ॥ हर्षयेत्तां मुहुः पुत्रजन्मशब्दजलानिलैः ॥ प्रत्यायांत तथा प्राणाः सूतिक्लेशावसादिताः ॥ ८४ ॥ पीछे पुत्र जन्मका शब्द शीतलपानी और शीतल वायु इन्होंकरके तिस गर्भिणीको बारंबार आनंदित करे तिस प्रकार करके जन्मसमयके क्लेशकरके अवसादित हुये प्राण फिर नवीनताको प्राप्त होते हैं ॥ ८४ ॥ धूपयेद्गर्भसंगे तु यानं कृष्णाहिकञ्चुकेः ॥ हिरण्यपुष्पीमूलं च पाणिपादेन धारयेत् ॥ ८५ ॥ जो गर्भ अडजावे तो कालेसपकी कांचलीकरके योनिको धूपित करें पीछे काली मुसलीकी hi हाथ तथा पैरकर्के धारण करै ॥ ८५ ॥ सुवर्चलां विशल्यां वा जराखपतनेऽपि च ॥ कार्यमेतत्तत्क्षिप्य बाह्वोरेनां विकम्पयेत् ॥ ८६ ॥ अथवा ब्राह्मीको और कलहारीको धारण करे और जो जर नहीं पड़े तो भी उपरोक्त यत्न करे तथा इस सूतिकाकी दोनो बाहुओंको पकड कंपावै ॥ ८६ ॥ कटीमाकोटयेत्पाय स्फिजौ गाढं निपीडयेत् ॥ तालुकण्ठं स्पृशेद्वेण्या मूर्ध्नि दद्यात्स्नुहीपयः ॥ ८७ ॥ अथवा टकनों करके कटिको आकोटित करे, अर्थात् कटिपे टकनोंकी चोट दिवा और कूलों को अत्यंत पीडित करै तथा वालोंकी वेणीकरके गर्भिणीके तालु कंठको स्पर्शित करै अथवा गर्भिणीके शिरमें थोहरके दूधको देवै ॥ ८७ ॥ भूर्जलांगलिकीतुम्बी सर्पत्वक्कुष्ठसर्षपैः ॥ पृथग्द्वाभ्यां समस्तैर्वा योनिलेपनपनम् ॥ ८८ ॥ भोजपत्र, कलहारी, तूंबी, सांपकी कैचली, कूठ, सरसों इन्होंमेंसे एक एककरके अथवा दो दोकरके अथवा सबोंकरके योनिपै लेप तथा धूप देना योग्य है ॥ ८८ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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