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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७८) अष्टाङ्गहृदयेनववें महीनेमें स्निग्धरूप और मांसके रससे संयुक्त चावल अथवा बहुतसे घृतसे संयुक्त यवागू अर्थात् गडयानी पीवें पूर्वोक्त मधुरऔषधोंकरके साधित किया अनुवासन घृत सेवना योग्य है।।६९॥ तत एव पिचुं चास्या योनौ नित्यं निधापयेत् ॥ वातघ्नपत्र गाम्भः शीतं स्नानेऽन्वहं हितम् ॥७॥ पीछे इस नारीकी योनिपै नित्यप्रति रूईके फोहेको स्थापित करै और वातनाशक पत्तोंके समूह करके कथित किया ठंढा पानी नित्यप्रति स्नानके अर्थ हित है ।। ७० ॥ निःस्नेहांगी न नवमान्मासात्प्रभृति वासयेत् ॥ प्रारदक्षिणस्तनस्तन्या पूर्व तत्पार्श्वचेष्टिनी ॥७१ ॥ नववें महीनेसे लगायत और गर्भका जन्म होवे तबतक तिस गर्भवती स्त्रीको स्नेहसे वर्जित न करै और पहले दाहिने स्तनमें दूधको उपजानेवाली गर्भिणी पुत्रको जनती है और पहले दाहिनी पसलीकरके चेष्टित अर्थात् शयन आदिको करनेवाली गर्भिणी पुत्रको जनती है ॥ ७१ ॥ पुन्नामदौ«दप्रश्नरतापुंस्त्वप्रदर्शिनी ॥ उन्नते दक्षिणे कुक्षौ गर्भे च परिमण्डले ॥७२॥ पुरुषके नामसे संयुक्तरूप दौटुंद अर्थात् औजनोंकी इच्छा करनेवाली और पुरुषनामवाले प्रश्नमें रतहुई गर्भवती नारी पुत्रको जनती है और पुरुषनामवाले पदार्थोंको देखनेकी इच्छावाली नारी पुत्रको उपजाती है और जिस गर्भवती स्त्रीका दाहनीतर्फकी कुक्षि ऊंची हो और गर्भस्थान गोलरूप हौ ॥ ७२ ॥ पुत्रं सूतेऽन्यथा कन्यां या चेच्छति नृसङ्गतिम् ॥ नृत्यवादित्रगान्धर्वगन्धमाल्यप्रिया च या ॥७३॥ वह नारी पुत्रको जनती है, इन लक्षणोंसे विपरीत लक्षणोंवाली और पुरुषसंगके साथ संगतिको इच्छित करनेवाली नारी कन्याको जनती है और नाचना, बाजे, गांधर्वविद्या, गंध, फूलोंकी मालाको प्रियमाननेवाली नारी कन्याको जनती है ॥ ७३ ॥ क्लीवं तत्सङ्गरे तत्र मध्यं कुक्षेः समुन्नतम् ॥ यमौ पार्श्वद्वयोन्नामात्कुक्षौ द्रोण्यामिवस्थिते ॥ ७४॥ पुत्रको जननेवाली और कन्याको जननेवाली इन दोनों गर्भवतियोंके लक्षण मिले और कुक्षिों मध्यभाग ऊंचा होवे तो नारी हीजडाको जनती है और दोनों तर्फके पाश्चोंके ऊंचेपनेसे और दोणीकी तरह कुक्षिकी स्थिति होवे तो नारी दोबालकोंको जनती है ॥ ७४ ॥ प्राक् चैव नवमान्मासात्सूतिकागृहमाश्रयेत् ॥ देशे प्रशस्त सम्भारैः सम्पन्नं साधकेऽहनि ॥७५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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