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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । अव्यक्तः प्रथमे मासि सप्ताहात्कललो भवेत् ॥ गर्भः पुंसवनान्यत्र पूर्वं व्यक्तेः प्रयोजयेत् ॥ ३९ ॥ सात दिनसे पहिले गर्भगोलक कफकी पिंडीसरखा होता है और सात दिनसे उपरांत प्रथम महीनेतक अव्यक्त आकृति से संयुक्त और कलीलाके समान गर्भ रहता है इसवास्ते व्यक्तीसे पहिले पुंसवन और महाकल्याणआदि वृत प्रयुक्त करने यदि कहोकि जब कर्मवशसे वह गर्भ स्त्रीरूपमें प्रगट होने को है तब पुंसवन करनेसे क्या होसकता है उसपर कहते हैं ॥ ३९॥ बली पुरुषकारो हि दैवमप्यतिवर्तते ॥ पुष्ये पुरुषकं मं राजतं वाथ वायसम् ॥ ४० ॥ बलवाला पुरुषार्थ दैव अर्थात् प्रारब्धको भी उल्लंघित करता है यदि प्रारब्धकर्म हीन है तो उसके निमित्त यह कर्म बली होता है इसपुंसवन से पूर्व जन्मके कर्मों को हीनबल और प्रबलता दीखती है और पुष्य नक्षत्रसे युक्त कालमें सोने चांदी अथवा लोहका पुतला बनाना !! ४० ॥ कृत्वाऽग्निवर्ण निर्वाप्य क्षीरे तस्याञ्जलिं पिबेत् ॥ गोरदण्डमपामार्ग जीवकर्षभशैर्यकान् ॥ ४१ ॥ (२७३ ) तिसको अग्निके समान वर्णवाला बनाके, दूधमें प्रवेशित कर पीछे आठ तोले प्रमाण तिस दूधको स्त्रीको पान करावे और गोरदंड, ऊंगा, जविक, ऋषभक, श्वेतकुरंटा, इन्होंमेंसे ॥ ४१ ॥ पिवेत्पुष्ये जले पिष्टानेकद्वित्रिसमस्तशः ॥ क्षीरेण श्वेतबृहतीमूलं नासापुटे स्वयम् ॥ ४२ ॥ एकको, दोको वा तीनको वा सबको जलमें पीस पुष्यनक्षत्र में पीवै, और सफेद कटेहली की जडको दूध में पीस आपही स्त्री ॥ ४२ ॥ पुत्रार्थ दक्षिणे सिञ्चेद्वामे दुहितृवाञ्छया || पयसा लक्ष्मणामूलं पुत्रोत्पादस्थितिप्रदम् ॥ ४३ ॥ पुत्रके अर्थ दाहिनी नासाके पुटमें और कन्याके अर्थ वामी नासिकाके पुटमें सेचन करै, और पुत्रकी उत्पत्ति और स्थितिको देनेवाले लक्ष्मणाकी जडको दूध में पीस ॥ ४३ ॥ नासयास्येन वा पीतं वटशृङ्गाष्टकं तथा ॥ औषधीजवनीयाश्च बाह्यान्तरुपयोजयेत् ॥ ४४ ॥ For Private and Personal Use Only नासिकाकरके अथवा मुखकरके पीवै, जिसके पुत्र न होता हो, वा होकर मर जाता हो उसे यह अवश्य पीनी चाहिये तथा बडके अंकुर आदि अष्टकको नासिका और मुखके द्वारा पीवै, तथा जीवनीयगण के दश औषधोंको स्नान और उबटना आदि के द्वारा भोजन और पान आदिक द्वारा उपयुक्त करै ॥ ४४॥ १८
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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