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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । पर्णे शरावे हस्ते वा भुञ्जीत ब्रह्मचारिणी ॥ चतुर्थेऽह्नि ततः स्नात्वा शुक्लमाल्याम्बरा शुचिः ॥ २६ ॥ पत्तल में तथा सकोरामें तथा हाथमें प्राप्तकरके खानेवाली और ब्रह्मचर्यको धारनेवाली रहे पीछे चौथेदिन स्नानकरके और सफेद फूलोंकी माला और स्वच्छ वस्त्रोंको, धारण करे हुये और पवित्र ॥ २६ ॥ इच्छन्ती भर्तृसदृशं पुत्रं पश्येत्पुरः पतिम् ॥ ऋतुस्तु द्वादशनिशाः पूर्वास्तिस्रश्च निन्दिताः ॥ २७ ॥ और पतिके समान पुत्रकी इच्छा करती हुई, प्रथम पतीको देखे और बारह रात्रियोंपर्यंत ऋतुकाल रहता है, तिन्होंमें पहली और दूसरी और तीसरी राति निंदित है ॥ २७ ॥ एकादशी च युग्मासु स्यात्पुत्रोऽन्यासु कन्यका ॥ उपाध्यायोऽथ पुत्रीयं कुर्वीत विधिवद्विधिम् ॥ २८ ॥ और ग्यारहवीं रात्रिभी निंदित है और युग्म अर्थात् पूरी रात्रियोंमें गर्भकी स्थिति होवे तो पुत्र उपजता है और अयुग्म रात्रियों में गर्भकी स्थिति होवे तो कन्या उपजती है, पीछे उपाध्याय अर्थात् कर्मकर्ता पंडित वेदोक्तविधिसे संयुक्त पुत्रीय कर्मको करै ॥ २८ ॥ ( २७१ ) नमस्कारपरायास्तु शूद्राया मन्त्रवर्जितम् ॥ अवन्ध्य एवं संयोगः स्यादपत्यं च कामतः ॥ २९ ॥ और प्रणाम करनेमें प्रधानरूप शूद्रकी स्त्रीके मंत्रकरके बर्जित पुत्रीय कर्मको करे और यथोक्त विधि अनुष्ठान में स्त्री और पुरुषका जो संयोग है वह बंध्य नहीं है किंतु गर्भकी उत्पत्ति करनेमें हेतु है, स्त्रीपुरुषका संयोग निष्फल नहीं होता किंतु पुत्र या कन्या की संतानको उपजाता है || २९ ॥ सन्तोऽप्याहुरपत्यार्थं दम्पत्योः सङ्गतं रहः ॥ दुरपत्यं कुलाङ्गारो गोत्रे जातं महत्यपि ॥ ३० ॥ साधु पुरुष भी संतानकी उत्पत्तिके अर्थ स्त्रीपुरुष के मैथुनको एकांत में कहते हैं, और बडेगोत्र में भी उत्पन्न हुई खोटी संतान कुलके विनाशके हेतु होती हैं ॥ ३० ॥ इच्छेतां यादृशं पुत्रं तद्रूपचरितांश्च तौ ॥ चिन्तयेतां जनपदांस्तदाचारपरिच्छदौ ॥ ३१ ॥ जैसे पुत्रकी इच्छाहो वैसे ही रूप और चरित्र वाले मनुष्यों के चितवन दर्शन और चरित्र उनके माता पिताओंको गर्भके समय आचरित करने चाहिये ॥ ३१ ॥ For Private and Personal Use Only कर्मान्ते च पुमान्सर्पिः क्षीरशाल्योदनाशितः ॥ प्राग्दक्षिणेन पादेन शय्यां मौहूर्तिकाज्ञया ॥ ३२ ॥
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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