SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५८) अष्टाङ्गहृदयेत्रिंशोऽध्यायः। अथातः क्षाराग्निकर्मविधिमध्यायं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर क्षराग्निकर्मविधिनामक अध्यायको व्याख्यान करेंगे । सर्वशस्त्रानुशस्त्राणां क्षारः श्रेष्ठो बहूनि यत् ॥ छेद्यभेद्यादिकर्माणि कुरुते विषमेष्वपि ॥१॥ सबप्रकार शस्त्र और अनुशस्त्रों के मध्यमें खार श्रेष्ठहै क्योंकि विषमस्थानों मेंभी यह खार छेद्य । भेद्य आदिकोको करता है ॥ १ ॥ दुःखावचार्यशस्त्रेषु तेन सिद्धिमयात्सु च ॥ अतिकृच्छ्रेषु रोगेषु यच्च पानेऽपि युज्यते ॥२॥ और दुःखकरके अवचारित शस्त्रवाले व्रणोंमें और बहुत प्रकारसे प्रकोपवाले व्रणों में और अतिकष्टसाध्य रोगोंमें और पीनेमें भी यह खार युक्त किया जाता है ॥ २ ॥ स पेयोऽर्थोऽग्निसादाश्मगुल्मोदरगरादिषु॥ योज्यः साक्षान्मपश्वित्रबाह्यार्शःकुष्ठसुप्तिषु ॥ ३॥ बवासीर मंदाग्नि पथरी गुल्म उदररोग आदियोंमें ग्वार पीना योग्य है और मष ( मसा ) श्वित्र कुष्ठ बाह्यगत बवासीर कुष्ठ सुप्तिवात ॥ ३ ॥ भगन्दराबुदग्रन्थिदुष्टनाडीव्रणादिषु ॥ न तूभयोऽपि योक्तव्यः पित्ते रक्त बलेऽबले॥४॥ भगंदर अर्बुद ग्रंथि दुष्टनाडीव्रण इन्होंमें लेखनकों के द्वारा खार ऊपर युक्त करना योग्य है और पित्तो रक्तके बलमें निर्बल मनुष्यके ॥ ४ ॥ ज्वरेऽतिसारे हृन्मूलरोगे पाण्ड्डामयेऽरुचौ॥ तिमिरे कृतसंशुद्धौ श्वयथौ सर्वगात्रगे॥५॥ तथा ज्वर, अतिसार, हृद्रोग, शिरोरोग, पांडुरोग, अरोचक, तिमिर इन्होंमें वमन विरेचनको लियेहुये मनुष्यके अर्थ सब गात्रमें प्राप्त हुआ शोजा ॥ ५ ॥ भीरुगर्भिण्यतुमती प्रोवृत्तफलयोनिषु॥ अजीर्णेऽन्ने शिशौ वृद्धे धमनीसन्धिमर्मसु ॥६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy