SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं माषाटीकासमेतम् । (२२७) सीदंतीः साललं प्राप्य रक्तमत्ता इति.त्यजेत् ॥ अथेतरा निशाकल्कयुक्तेऽम्भसि परिप्लुताः॥४०॥ और वे पानीमें प्राप्त होके शिथिलरूप होजावे, ऐसी रक्तकरके उन्मत्त हुई जोकोंको वैद्य त्यागे, पीछे हलदीका कल्कयुक्त पानीमें पारप्लुत हुई ॥ ४०॥ अवन्तिसोमे तके वा पुनश्चाश्वासिता जले ॥ लागयेद्धृतमृत्स्नाङ्गशस्त्ररक्तनिपातनैः ॥ ४१ ॥ ___ अथवा कांजीमें अथवा तक्रमें परिप्लुत हुई, और फिर पानीमें आश्वासित करीहुई अन्य जोकोंको घृत माटी अङ्गमें शस्त्रके द्वारा रक्तका निकासना इन्होंकरके लगावै ॥ ४१॥ पिबन्तीरुन्नतस्कंधाञ्छादयेन्मृदुवाससा ॥ सम्पृक्ताद्दुष्टशुद्धास्राज्जलौका दुष्टशोणितम् ॥ ४२ ॥ और ऊपरको कन्धोंवाली और रक्तको पीतीहुई तिन जोकोंको कोमल वस्त्रसे आच्छादित करे, दुष्टपना और शुद्धपनसे मिलेहुये रक्तसेभी जोंक दुष्टरक्तको ॥ ४२ ॥ आदत्ते प्रथमं हंसः क्षीरं क्षीरोदकादिव ॥ दंशस्य तोदे कण्ड्डा वा मोक्षयेद्वामयेच्च ताम्॥४३॥ पहिले ग्रहण करती है, जैसे हंस दूध और पानीसे मिले हुये समुद्रसे दूधको, और जब दंशमें चमका और खुजली मालूम होवे तब तिसजोंकको अङ्गसे अलग करके निचोड देवै ॥ ४३ ॥ पटुतैलाक्तवदनां श्लक्ष्णकण्डनरूक्षिताम् ॥ रक्षनक्तमदाद्भूयः सप्ताहं ता न पातयेत् ॥ ४४ ॥ और सेंधानमकसे युक्त तेलकरके रूक्षितमुखवाली, और सूक्ष्मरूप चावलके कण्डन करके रूक्षित तिस निचोडी हुई जोकको रक्तके मदमे रक्षा करता हुआ वैद्य फिर सातदिनोंतक योजित करै नहीं ॥ ४४ ॥ पूर्ववत्पटुता दाढ्यं सम्यग्वान्ते जलौकसाम् ॥ क्लमोतियोगान्मृत्यु दुर्वान्ते स्तब्धता मदः ॥४५॥ और जोखोंके अच्छीतरह निचोडनेमें जब नहीं लगाई गईथी तबकी तरह चपलता और दृढता . होजाती है और जोकोंको अति निचोडनेमें जोकोंको ग्लानि अथवा जोखोंकी मृत्यु होजाती है और जोखोंके बुरीतरह निचोडनेमें स्तब्धता और मद उपजता है ॥ ४५ ॥ अन्यत्रान्यत्र ताः स्थाप्या घटे मृत्स्नाम्बुगर्भिणी ॥ लालादिकोथनाशार्थ सविषाः स्युस्तदन्वयात् ॥ ४६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy