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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * अधाब्रहदये— दश अंगुलोंकी लंबाईसे संयुक्त और पांचअंगुलपरिमाण अंगुलोंकी मुटाईसे संयुक्त नाडीयंत्र कंठके भीतर प्राप्त हुये शल्यको देखनेके अर्थ नाडीयंत्र बनाना चाहिये और पांचमुख और छिद्रोंसे संयुक्त और चतुष्कर्ण अर्थात् वारंगके संग्रहमें युक्त करनेके योग्य वह नाडीयंत्र बनाना चाहिये १३ वारङ्गस्य द्विकर्णस्य त्रिच्छिद्रा तत्प्रमाणतः॥ वारङ्गकर्णसंस्थानानाहदैानुरोधतः ॥ १४ ॥ और दोदो कोवाले वारंग अर्थात् शिखाके आकार कीलकके संग्रहमें तीन छिद्र और तीन मुखचाला यंत्र बनाना चाहिये और वारंग करणके संस्थान और मुटाई और लंबाई इन्होंके अनुरोधसे १४ नाडीरेवंविधाश्चान्या द्रष्टुं शल्यानि कारयेत् ॥ पद्मकर्णिकया मूर्ध्नि सदृशी द्वादशांगुला ॥१५॥ अन्यभी नाडीयंत्र शरीरके भीतर प्राप्त हुए शल्योंको देखनेके अर्थ बनाने चाहिये और शिरके भागमें पद्मकणिकाके सदृश और बारह अंगुलप्रमाणसे संयुक्त ॥ १५ ॥ चतुर्थसुषिरा नाडी शल्यनिर्घातिनी मता ॥ अर्शसां गोस्तनाकारं यन्त्रकं चतुरङ्गुलम् ॥ १६ ॥ और चौथेभागगत छिद्रसे संयुक्त ऐसा नाडीयंत्र मुनिजनोंने शल्यका निर्यातके अर्थ माना और बवासीररोगोंमें गायके थनके समान आकारवाला और चार चार अंगुलप्रमाणसे संयुक्त यंत्र बनाना उचित है ॥ १६ ॥ नाहे पञ्चांगुलं पुंसां प्रमदानां षडंगुलम् ॥ द्विच्छिद्रं दर्शने व्याधेरेकच्छिद्रं तु कर्मणि ॥१७॥ पुरुषोंके अर्थ मुटाईमें पांच अंगुलप्रमाणसे संयुक्त और स्त्रियों के अर्थ छ: ६ अंगुलप्रमाणस संयुक्त यंत्र बनाना चाहिये और व्याधिक देखनेमें दोछिद्रोंवाला और शस्त्रक्षारआदि क्रियामें एक छिद्रवाला यंत्र बनाना चाहिये ॥ १७ ॥ मध्येऽस्य व्यंगुलं छिद्रमंगुष्ठोदरविस्तृतम् ॥ अर्धांगुलोच्छ्रितोद्वृत्तकर्णिकन्तु तदूर्ध्वतः ॥ १८॥ इस यंत्रके मध्यमें तीन अंगुल छिद्र और अंगूठाके उदरके समान विस्तृत और तिसके ऊपर अर्धअंगुल ऊंची उद्धृतरूप कणिकासे संयुक्त यंत्र बनाना चाहिये ॥ १८ ॥ शम्याख्यं तादृगच्छिद्रं यन्त्रमर्शःप्रपीडनम् ॥ सर्वथापनयेदोष्ठं छिद्रादूर्ध्वं भगन्दरे ॥१९॥ शमीयंत्रभी गायके थनके समान आकृतिवाला आदि लक्षणोंसे लक्षित होना चाहिये । परंतु इस यंत्रमें छिद्रको नहीं करना वह बबासरिको प्रपीडन करनेके वास्ते है सबप्रकारसे भगंदर यंत्रमें ओष्टको छिद्रसे उपरांति दूर करै ॥ १९॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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