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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९६) अष्टाङ्गहृदयेमर्शे च प्रतिमर्शे च विशेषो न भवेद्यदि॥ को मर्श सपरीहारं सापदं च भजेत्ततः॥३५॥ जो मर्शमें और प्रतिमर्शमें विशेषता नहीं होवे तो परीहार और आपदकरके सहित मर्शको कोन सेवै ॥ ३५ ॥ अच्छपानविकाराख्यौ कुटीवातातपस्थिती॥ अन्वासमात्रावस्ती च तद्वदेव च निर्दिशेत् ॥ ३६॥ अच्छपान स्नेह शीघ्रकारी और गुणोत्कर्षवाला है और विकाराख्य स्नेह चिरकारी और गुणोंकी अपकृष्टतावाला है और कुटी प्रवेश स्थिति करके जो रसायन उपयुक्त किया जाता है और जो वात तथा घाम आदिके परीहारसे संयुक्त स्थिति करके रसायन प्रयुक्त किया जाता है, तथा अनुवासन बस्ति और मात्रा बस्ति जो हैं ये सब आशुकारी आदिगुणों करके संयुक्त क्रमसे जानने ॥ ३६ ॥ जीवंतीजलदेवदारुजलदत्वक्सेव्यगोपीहिमं दारूत्वङ्मधुकप्लवागुरुवरापुण्ड्राह्वबिल्वोत्पलम्॥ धावन्यौ सुरभिः स्थिरे कृमिहरं पत्रं त्रुटि रेणुकं किञ्जल्कं कमलाह्वयं शतगुणे दिव्येऽम्भासि क्वाथयेत्॥३७॥ जीवन्ती, नेवाला, देवदार, नागरमोथा, दालचीनी, कालावाला, सारिवा, चन्दन, दारुहलदी की छाल, मुलहटी, गोपालदमनी, अगर, त्रिफला, पौंडा, वेलगिरी, कमल, कंटकारिका, महोंटिका, सल्लुकी, शालपर्णी, पृश्निपर्णी, वायविडंग, तेजपात, इलायची, रेणुकीज, कमलकेशर इन सबोंकी समान तेल लेना पीछे इन सबोंको शत १०० गुणे दिव्य पानीमें कथित करें ॥ ३७ ॥ तैलाद्रसं दशगुणं परिशेष्य तेन तैलं पचच्च सलिलेन दशैव वारान्॥ पाके क्षिपेच्च दशमे सममाजदुग्धं नस्यं महागुणमुशन्त्यणुतैलमेतत्३८ ___ जबतक तेलसे दशगुणा रस रहे, पीछे तिस काथ करके तेलको दशवार पकावे और दशमें पाकमें तेलके समान बकरीका दूध मिलवावै पीछे फिर पकावै ऐसे यह अणु तेल बनता है इसका नस्य अत्यंत गुणोंको देता है ॥ ३८ ॥ घनोन्नतप्रसन्नत्वक्स्कंधग्रीवास्यवक्षसः॥ दृढेन्द्रियास्त्वपलिता भवेयुर्नस्यशालिनः ॥३९॥ _ नस्यके अभ्यास करनेसे घन उन्नत और प्रसन्नरूप त्वचा, कंधा, ग्रीवा, मुख, छातीवाले तथा दृढ इंद्रिय होतेहैं और पलित अर्थात् केशोंकी श्वेतताजाती रहतीहै ॥ ३९॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपण्डितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां सूत्रस्थाने विंशोऽध्यायः॥ २० ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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