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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १७२ ) हृदये पित्तकी अधिकता वाला कोष्ठ कोमल होता है इसमें दूधसेभी जुलाब होजाता है और वातकी -अधिकतावाला कोष्ठ क्रूर होता है इसमें निशोत आदि औषधोंकरकेभी कष्टसे जुलाब लगता है ३४ कषायमधुरैः पित्ते विरेकः कटुकैः कफे ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्निग्धोष्णलवणैर्वायौ अप्रवृत्तौ तु पाययेत् ॥ ३५ ॥ कषाय और मधुर द्रव्योंकरके पित्तमें विरचेन लेना और कटु औषधोकर के कफरोगमें विरचेन लेना और वायुज रोग में स्निग्ध, उष्ण, लवण द्रव्योंकरके विरेचन देवे और विरेचनकी अप्रवृत्ति होवे तो गरम जलका पान करवायै ॥ ३५ ॥ उष्णाम्बु स्वेदयेदस्य पाणितापेन चोदरम् ॥ उत्थानेऽल्पे दिने तस्मिन् भुक्त्वान्येद्युः पुनः पिबेत् ॥ ३६ ॥ और हाथोंकी गरमाई करके उदरको स्वेदित करै और जो तिस दिनमें विरेचनकी अल्प प्रवृत्ति होवे तो अन्नका भोजन करके अगले दिनमें फिर विरेचन संज्ञक औषधको पीवै ॥ ३६ ॥ स्नेहकोष्ठस्तु पिबेदूर्ध्वं दशाहतः ॥ भूयोऽप्युपस्कृततनुः स्वेदस्नेहैर्विरेचनम् ॥ ३७ ॥ जिसका कोष्ठ दृढ न हो वह मनुष्य स्नेह और स्वेदसे युक्त शरीवाला होकर दश दिनके उपरान्त योगिक विरेचनको पीवै ॥ ३७ ॥ योगिकं सम्यगालोच्य स्मरन्पूर्वमनुक्रमम् ॥ हृत्कुक्ष्यशुद्धिररुचिरुत्क्लेशः श्लेष्मपित्तयोः ॥ २८ ॥ पीछे अच्छी तरह देखकर और पूर्वक्रमका स्मरण करके औषधको पीता रहे, और हृदय तथा कुक्षिक अशुद्धि हो अरुचि कफ और पित्तका उत्क्लेश हो ॥ ३८ ॥ कण्डूर्विदाहः पिटिका पीनसो वातविग्रहः ॥ अयोगलक्षणं योगो वैपरीत्ये यथोदितात् ॥ ३९ ॥ , और खाज, विदाह, पिटिका, वातग्रह, विग्रह ये सब उपजैं तब अयोगका लक्षण जानो और इन लक्षणोंसे विपरीत लक्षण मिलै तब योगके लक्षण जानो ये दोनों अयोग और योग विरेचन के हैं ॥ ३९ ॥ विपित्तकफवातेषु निःसृतेषु क्रमात् स्त्रवेत् ॥ निःश्लेष्मवित्तमुदकं श्वेतं कृष्णं सलोहितम् ॥ ४० ॥ विष्ठा, पित्त, कफ, वात इन्होंके निकसने पीछे क्रम से कफ और पित्तसे रहित और श्वेत, कृष्ण तथा पतिरक्त ॥ ४० ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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