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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १६८ ) हृदये- वातास्त्रमूर्ध्वगं रक्तं मूत्राघातः शकृद्रहः ॥ वम्याश्च कुष्ठमेहाद्याः न तु रेच्यो नवज्वरी ॥ १० ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऊर्ध्वगत वातरक्त, रक्तदोष, मूत्राघात, विग्रह, कुष्ट, प्रमेह, अपची, ग्रंथी, श्लीपद, उन्माद, खांसी, श्वास, हल्लास, विसर्प, दूधदोष, ऊर्ध्वरोग ये सब रोग विरेचन अर्थात् जुलाब करके साध्य हैं परंतु नवीन ज्वरवाले मनुष्यको विरेचन देवै नहीं ॥ १० ॥ ॥ अल्पाग्न्यधोगपित्तास्रक्षतपाय्वतिसारिणः सशल्यास्थापितक्रूरकोष्ठातिस्निग्धशोषिणः ॥ ११ ॥ मंदाग्नि, अधोगत, रक्तपित्त, गुदा, क्षत, अतिसार, शल्यकरके संयुक्त, आस्थापित क्रूरकोष्ठ, अतिस्निग्ध, शोषरोग इन रोगोंवालों को जुलाब देना योग्य नहीं है ॥ ११ ॥ अथ साधारणे काले स्निग्धस्विन्नं यथाविधि ॥ वयमष्टिक मत्स्यमापतिलादिभिः ॥ १२ ॥ साधारण कालमें विधिके अनुसार स्निग्ध और स्विन्न और आगलेदिन वमन देनेके योग्य और मछली, उडद, तिलसे जिसका कफ स्थानसे, चलायमान होगया है ॥ १२ ॥ निशां सुतं सुजीर्णानं पूर्वाह्णे कृतमंगलम् ॥ निरन्नमीषत्स्निग्धं वा पेयया पीतसर्पिषम् ॥ १३ ॥ और रात्रिमें शयन करनेवाला और अच्छी तरह जीर्णअन्नवाला और पूर्वाह्न में मंगल कर्मको कियेहुये और भोजनको नहीं किये कुछेक स्निग्ध पेयाकरके संयुक्त वृतको पियेहुए मनुष्यको ॥ १३ ॥ वृद्धवालावलक्लीवभीरून्रोगानुरोधतः ॥ 1 आकण्ठं पायितान्मद्यं क्षीरमिक्षुरसं रसम ॥ १४ ॥ वृद्ध, बालक, वलसे रहित, नपुंसक, डरपोकको रोगके अनुरोधसे कंठतक मदिरा, दूध, ईखका रस, मांसका रस, पान करायके ॥ १४ ॥ यथाविकारविहितां मधुसैन्धवसंयुताम् ॥ कोष्टं विभज्य भैषज्यमात्रां मन्त्राभिमन्त्रिताम् ॥ १५ ॥ इसके पश्चात् रोगके अनुसार रची हुई शहद और सेंधानमकसे संयुक्त और मंत्रों करके अभिमंत्रित औषधमात्राको तयार करै, परंतु रोगीके तीक्ष्ण, मध्यम, कोमल, रीतिसे कोष्टके विभागको प्रथम देखले ॥ १५ ॥ ब्रह्मदक्षाश्विरुद्रेन्द्रभूचन्द्रार्कानिलानलाः ॥ ऋषयः सौषधिग्रामा भूतसंघाश्च पान्तु वः ॥ १६ ॥ ब्रह्मा, दक्षप्रजापती, अश्विनीकुमार, महादेव, इंद्र, पृथ्वी, चंद्रमा, सूर्य, वायु, अग्नि, सब ऋषिगण, औषधी, ग्राम, भूतों के समूह ये सब तुम्हारी रक्षा करें ॥ १६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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