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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५०) अष्टाङ्गहृदये• • खारीमाटी–नीलाथोथा-हींग-दोनों कासीस-सेंधानमक-शिलाजीत-यह ऊषकादि गण मूत्र कृच्छ्र–पथरी-गुल्म-मेदरोग-कफरोगको नाशता है ॥ २३ ॥ वेल्लन्तरारणिकबूकवृषाश्मभेदगोकण्ठकेत्कटसहाचरवाणकाशाः ॥ कक्षादनीनलकुशद्वयगुण्ठगुन्द्रा भल्लूकमोरटकुरण्टकरम्भपार्थाः॥ २४॥ वीरतरु-अरनी-ईश्वरमल्लिका-वांसा-पाषाणभेद-गोखरू-दीर्घलोहितयष्टिका-पीयावांसा नीलाकोरंटा-काश-अमरवेल--नड-दोनों प्रकारकी कुशा--वंततृण--पदएरक--इयोमाक--मूर्वाकुरंटक--उत्तमअरनी-अर्जुन ॥ २४ ॥ वर्गो वीरतराद्योऽयं हन्ति वातकृतान्गदान् ॥ अश्मरीशर्करामूत्रकृच्छ्रघातरुजाहरः॥२५॥ . यह वीरतर्वादिगण वातकृतरोग पथरी शर्करा मूत्रकृच्छ्र मूत्राघात इन रोगोंको हरता है ॥२५॥ रोधशाबरकरोध्रपलाशाजिंगिणी सरलकट्फलयुक्ताः॥ कुत्सिताम्बकदलीगतशोका सैलवालुपरिपेलवमोचाः॥ २६ ॥ रोध्र अर्थात् तिल्वक लोध शावरलोध केशूढाक कचूर कृष्णशंभल सरलवृक्ष कायफल कदंव केला अशोकवृक्ष एलुवालक गोपालदमनीकेवटी मोथा सेमल ॥ २६ ॥ एष रोध्रादिको नाम मेदःकफहरो गणः ॥ योनिदोषहरः स्तम्भी वयाँ विषविनाशनः ॥२७॥ यह रोध्रादिगण मेद, कफ, योनिदोषको हरता है और स्तंभी है और वर्णमें हित है और विषको नाशता है ॥ २७ ॥ अर्कालकौं नागदन्ती विशल्या भार्गी रास्ना वृश्चिकाली प्रकीर्या ॥ प्रत्यकपुष्पी पीततैलोदकीर्याश्वेतायुग्मं तापसानां च वृक्षः ॥ २८॥ आक, लालआक, पर्वपुष्पिका, कलहारी भारंगी, रायशण उष्ट्रघूमकी-करंजुवा-ऊंगाकाकादनी-करंजुवा-अपराजिता अर्थात् कोइल-दोनों खदिर-किन्ही-इंगुदीवृक्ष ॥ २८ ॥ अयमर्कादिको वर्गः कफमेदोविषापहः ॥ कृमिकुष्ठप्रशमनो विशेषाद्वणशोधनः॥ २९ ॥ यह अर्कादिगण कफ मेद विष कृमि कुष्ट इन्होंको नाशता है और विशेष करके व्रणको शोधता है ॥ २९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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